Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 276-277.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
४०९
कीदृशौ प्रतिषेध्यप्रतिषेधकौ व्यवहारनिश्चयनयाविति चेत्
आयारादी णाणं जीवादी दंसणं च विण्णेयं
छज्जीवणिकं च तहा भणदि चरित्तं तु ववहारो ।।२७६।।
आदा खु मज्झ णाणं आदा मे दंसणं चरित्तं च
आदा पच्चक्खाणं आदा मे संवरो जोगो ।।२७७।।
आचारादि ज्ञानं जीवादि दर्शनं च विज्ञेयम्
षड्जीवनिकायं च तथा भणति चरित्रं तु व्यवहारः ।।२७६।।
आत्मा खलु मम ज्ञानमात्मा मे दर्शनं चरित्रं च
आत्मा प्रत्याख्यानमात्मा मे संवरो योगः ।।२७७।।
आचारादिशब्दश्रुतं ज्ञानस्याश्रयत्वाज्ज्ञानं, जीवादयो नवपदार्था दर्शनस्याश्रय-

हवे पूछे छे के ‘‘निश्चयनय वडे निषेध्य (अर्थात् निषेधावायोग्य) जे व्यवहारनय, अने व्यवहारनयनो निषेधक जे निश्चयनयते बन्ने नयो केवा छे?’’ एवुं पूछवामां आवतां व्यवहार अने निश्चयनुं स्वरूप कहे छेः

‘आचार’ आदि ज्ञान छे, जीवादि दर्शन जाणवुं,
षट्जीवनिकाय चरित छे,ए कथन नय व्यवहारनुं. २७६.
मुज आत्म निश्चय ज्ञान छे, मुज आत्म दर्शन-चरित छे,
मुज आत्म प्रत्याख्यान ने मुज आत्म संवर-योग छे. २७७.

गाथार्थः[आचारादि] आचारांग आदि शास्त्रो ते [ज्ञानं] ज्ञान छे, [जीवादि] जीव आदि तत्त्वो ते [दर्शनं विज्ञेयम् च] दर्शन जाणवुं [च] अने [षड्जीवनिकायं] छ जीव-निकाय ते [चरित्रं] चारित्र छे[तथा तु] एम तो [व्यवहारः भणति] व्यवहारनय कहे छे.

[खलु] निश्चयथी [मम आत्मा] मारो आत्मा ज [ज्ञानम्] ज्ञान छे, [मे आत्मा] मारो आत्मा [दर्शनं चरित्रं च] दर्शन अने चारित्र छे, [आत्मा] मारो आत्मा ज [प्रत्याख्यानम्] प्रत्याख्यान छे, [मे आत्मा] मारो आत्मा ज [संवरः योगः] संवर अने योग (समाधि, ध्यान) छे.

टीकाःआचारांग आदि शब्दश्रुत ते ज्ञान छे कारण के ते (शब्दश्रुत) ज्ञाननो

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