कहानजैनशास्त्रमाळा ]
हवे पूछे छे के ‘‘निश्चयनय वडे निषेध्य (अर्थात् निषेधावायोग्य) जे व्यवहारनय, अने व्यवहारनयनो निषेधक जे निश्चयनय — ते बन्ने नयो केवा छे?’’ एवुं पूछवामां आवतां व्यवहार अने निश्चयनुं स्वरूप कहे छेः —
गाथार्थः — [आचारादि] आचारांग आदि शास्त्रो ते [ज्ञानं] ज्ञान छे, [जीवादि] जीव आदि तत्त्वो ते [दर्शनं विज्ञेयम् च] दर्शन जाणवुं [च] अने [षड्जीवनिकायं] छ जीव-निकाय ते [चरित्रं] चारित्र छे — [तथा तु] एम तो [व्यवहारः भणति] व्यवहारनय कहे छे.
[खलु] निश्चयथी [मम आत्मा] मारो आत्मा ज [ज्ञानम्] ज्ञान छे, [मे आत्मा] मारो आत्मा ज [दर्शनं चरित्रं च] दर्शन अने चारित्र छे, [आत्मा] मारो आत्मा ज [प्रत्याख्यानम्] प्रत्याख्यान छे, [मे आत्मा] मारो आत्मा ज [संवरः योगः] संवर अने योग ( – समाधि, ध्यान) छे.
टीकाः — आचारांग आदि शब्दश्रुत ते ज्ञान छे कारण के ते (शब्दश्रुत) ज्ञाननो