Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 174 Gatha: 278.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
४११

दर्शनस्य सद्भावात्; शुद्ध आत्मैव चारित्रस्याश्रयः, षड्जीवनिकायसद्भावेऽसद्भावे वा तत्सद्भावेनैव चारित्रस्य सद्भावात्

(उपजाति)
रागादयो बन्धनिदानमुक्ता-
स्ते शुद्धचिन्मात्रमहोऽतिरिक्ताः
आत्मा परो वा किमु तन्निमित्त-
मिति प्रणुन्नाः पुनरेवमाहुः
।।१७४।।
जह फलिहमणी सुद्धो ण सयं परिणमदि रागमादीहिं
रंगिज्जदि अण्णेहिं दु सो रत्तादीहिं दव्वेहिं ।।२७८।।

असद्भावमां तेना (अर्थात् शुद्ध आत्माना) सद्भावथी ज दर्शननो सद्भाव छे; शुद्ध आत्मा ज चारित्रनो आश्रय छे, कारण के छ जीव-निकायना सद्भावमां के असद्भावमां तेना (अर्थात् शुद्ध आत्माना) सद्भावथी ज चारित्रनो सद्भाव छे.

भावार्थःआचारांग आदि शब्दश्रुतनुं जाणवुं, जीवादि नव पदार्थोनुं श्रद्धान करवुं तथा छ कायना जीवोनी रक्षाए सर्व होवा छतां अभव्यने ज्ञान, दर्शन, चारित्र नथी होतां, तेथी व्यवहारनय तो निषेध्य छे; अने शुद्धात्मा होय त्यां ज्ञान, दर्शन, चारित्र होय ज छे, तेथी निश्चयनय व्यवहारनो निषेधक छे. माटे शुद्धनय उपादेय कह्यो छे.

हवे आगळना कथननी सूचनानुं काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः‘‘[रागादयः बन्धनिदानम् उक्ताः] रागादिकने बंधनां कारण कह्या अने वळी [ते शुद्ध-चिन्मात्र-महः-अतिरिक्ताः] तेमने शुद्धचैतन्यमात्र ज्योतिथी (अर्थात् आत्माथी) भिन्न कह्या; [तद्-निमित्तम्] त्यारे ते रागादिकनुं निमित्त [किमु आत्मा वा परः] आत्मा छे के बीजुं कोई?’’ [इति प्रणुन्नाः पुनः एवम् आहुः] एवा (शिष्यना) प्रश्नथी प्रेरित थया थका आचार्यभगवान फरीने आम (नीचे प्रमाणे) कहे छे. १७४.

उपरना प्रश्नना उत्तररूपे आचार्यभगवान गाथा कहे छेः

ज्यम स्फटिकमणि छे शुद्ध, रक्तरूपे स्वयं नहि परिणमे,
पण अन्य जे रक्तादि द्रव्यो ते वडे रातो बने; २७८.