Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 178.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
४२१

मत्कार्यत्वाभावात्,इति तत्त्वज्ञानपूर्वकं पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतं प्रत्याचक्षाणो नैमित्तिकभूतं बन्धसाधकं भावं प्रत्याचष्टे, तथा समस्तमपि परद्रव्यं प्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्तं भावं प्रत्याचष्टे एवं द्रव्यभावयोरस्ति निमित्तनैमित्तिकभावः

(शार्दूलविक्रीडित)
इत्यालोच्य विवेच्य तत्किल परद्रव्यं समग्रं बलात्
तन्मूलां बहुभावसन्ततिमिमामुद्धर्तुकामः समम्
आत्मानं समुपैति निर्भरवहत्पूर्णैकसंविद्युतं
येनोन्मूलितबन्ध एष भगवानात्मात्मनि स्फू र्जति
।।१७८।।

पुद्गलद्रव्य ते मारुं कार्य नथी कारण के ते नित्य अचेतन होवाथी तेने मारा कार्यपणानो अभाव छे,’’एम तत्त्वज्ञानपूर्वक निमित्तभूत पुद्गलद्रव्यने पचखतो आत्मा (मुनि) जेम नैमित्तिकभूत बंधसाधक भावने पचखे छे, तेम समस्त परद्रव्यने पचखतो (त्यागतो) आत्मा तेना निमित्ते थता भावने पचखे छे. आ प्रमाणे द्रव्य अने भावने निमित्त -नैमित्तिकपणुं छे.

भावार्थःअहीं अधःकर्म अने उद्देशिक आहारना द्रष्टांतथी द्रव्य अने भावनुं निमित्त-नैमित्तिकपणुं द्रढ कर्युं छे.

जे पापकर्मथी आहार नीपजे ते पापकर्मने अधःकर्म कहेवामां आवे छे, तेम ज ते आहारने पण अधःकर्म कहेवामां आवे छे. जे आहार, ग्रहण करनारना निमित्ते ज बनाववामां आव्यो होय तेने उद्देशिक कहेवामां आवे छे. आवा (अधःकर्म अने उद्देशिक) आहारने जेणे पचख्यो नथी तेणे तेना निमित्ते थता भावने पचख्यो नथी अने जेणे तत्त्वज्ञानपूर्वक ते आहारने पचख्यो छे तेणे तेना निमित्ते थता भावने पचख्यो छे. आ रीते समस्त द्रव्यने अने भावने निमित्त-नैमित्तिकभाव जाणवो. जे परद्रव्यने ग्रहण करे छे तेने रागादिभावो पण थाय छे, ते तेमनो कर्ता पण थाय छे अने तेथी कर्मनो बंध पण करे छे; ज्यारे आत्मा ज्ञानी थाय छे त्यारे तेने कांई ग्रहण करवानो राग नथी, तेथी रागादिरूप परिणमन पण नथी अने तेथी आगामी बंध पण नथी. (ए रीते ज्ञानी परद्रव्यनो कर्ता नथी.)

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छे, जेमां परद्रव्यने त्यागवानो उपदेश करे छेः

श्लोकार्थः[इति] आम (परद्रव्यनुं अने पोताना भावनुं निमित्त-नैमित्तिकपणुं)