Samaysar (Hindi).

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त्वेऽपि स्वयं रसरूपेणापरिणमनाच्चारसः; तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानरूपगुणत्वात्,
पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमरूपगुणत्वात्, परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद्
द्रव्येन्द्रियावष्टंभेनारूपणात्, स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेन्द्रियावलंबेनारूपणात्,
सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलरूपवेदनापरिणामापन्नत्वेनारूपणात्, सकलज्ञेय-
ज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाद्रूपपरिच्छेदपरिणतत्वेऽपि स्वयं रूपरूपेणापरिणमनाच्चारूपः; तथा
पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानगन्धगुणत्वात्, पुद्गलद्रव्यगुणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमगन्धगुणत्वात्,
परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावाद् द्रव्येन्द्रियावष्टंभेनागंधनात्, स्वभावतः क्षायोपशमिकभावा-
भावाद्भावेन्द्रियावलंबेनागन्धनात्, सकलसाधारणैकसंवेदनपरिणामस्वभावत्वात्केवलगन्धवेदना-
परिणामापन्नत्वेनागन्धनात्, सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाद्गन्धपरिच्छेदपरिणतत्वेऽपि स्वयं
कहानजैनशास्त्रमाला ]
जीव-अजीव अधिकार
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होनेसे रसके ज्ञानरूप परिणमित होने पर भी स्वयं रसरूप परिणमित नहीं होता, इसलिये अरस
है
।६। इस तरह छह प्रकारके रसके निषेधसे वह अरस है
इसप्रकार, जीव वास्तवमें पुद्गलद्रव्यसे अन्य होनेके कारण उसमें रूपगुण विद्यमान
नहीं है, इसलिये अरूप है ।१। पुद्गलद्रव्यके गुणोंसे भी भिन्न होनेके कारण स्वयं भी रूपगुण
नहीं है, इसलिये अरूप है ।२। परमार्थसे पुद्गलद्रव्यका स्वामीपना भी उसे नहीं होनेसे वह
द्रव्येन्द्रियके आलम्बन द्वारा भी रूप नहीं देखता, इसलिए अरूप है ।३। अपने स्वभावकी
दृष्टिसे देखा जाय तो क्षायोपशमिक भावका भी उसे अभाव होनेसे वह भावेन्द्रियके आलम्बन
द्वारा भी रूप नहीं देखता, इसलिये अरूप है
।४। सकल विषयोंके विशेषोंमें साधारण ऐसे
एक ही संवेदनपरिणामरूप उसका स्वभाव होनेसे केवल एक रूपवेदनापरिणामको प्राप्त होकर
रूप नहीं देखता, इसलिये अरूप है
।५। (उसे समस्त ज्ञेयोंका ज्ञान होता है परन्तु) सकल
ज्ञेयज्ञायकके तादात्म्यका निषेध होनेसे रूपके ज्ञानरूप परिणमित होने पर भी स्वयंरूप रूपसे
नहीं परिणमता इसलिये अरूप है
।६। इस तरह छह प्रकारसे रूपके निषेधसे वह अरूप है
इसप्रकार, जीव वास्तवमें पुद्गलद्रव्यसे अन्य होनेके कारण उसमें गन्धगुण विद्यमान
नहीं है, इसलिये अगन्ध है ।१। पुद्गलद्रव्यके गुणोंसे भी भिन्न होनेके कारण स्वयं भी गन्धगुण
नहीं है, इसलिये अगन्ध है ।२। परमार्थसे पुद्गलद्रव्यका स्वामीपना भी उसे नहीं होनेसे वह
द्रव्येन्द्रियके आलम्बन द्वारा भी गन्ध नहीं सूंघता, इसलिए अगन्ध है ।३। अपने स्वभावकी
दृष्टिसे देखा जाय तो क्षायोपशमिक भावका भी उसे अभाव होनेसे वह भावेन्द्रियके आलम्बन
द्वारा भी गन्ध नहीं सूंघता अतः अगन्ध है
।४। सकल विषयोंके विशेषोंमें साधारण ऐसे एक
ही संवेदनपरिणामरूप उसका स्वभाव होनेसे वह केवल एक गन्धवेदनापरिणामको प्राप्त होकर