यः कृष्णो हरितः पीतो रक्तः श्वेतो वा वर्णः स सर्वोऽपि नास्ति जीवस्य, पुद्गल- द्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् । यः सुरभिर्दुरभिर्वा गन्धः स सर्वोऽपि नास्ति जीवस्य, [मोहः ] मोह भी [न एव विद्यते ] विद्यमान नहीं, [प्रत्ययाः नो ] प्रत्यय (आस्रव) भी नहीं, [कर्म न ] कर्म भी नहीं [च ] और [नोकर्म अपि ] नोकर्म भी [तस्य नास्ति ] उसके नहीं हैं; [जीवस्य ] जीवके [वर्गः नास्ति ] वर्ग नहीं, [वर्गणा न ] वर्गणा नहीं, [कानिचित् स्पर्धकानि न एव ] कोई स्पर्धक भी नहीं, [अध्यात्मस्थानानि नो ] अध्यात्मस्थान भी नहीं [च ] और [अनुभागस्थानानि ] अनुभागस्थान भी [न एव ] नहीं हैं; [जीवस्य ] जीवके [कानिचित् योगस्थानानि ] कोई योगस्थान भी [न सन्ति ] नहीं [वा ] अथवा [बन्धस्थानानि न ] बंधस्थान भी नहीं, [च ] और [उदयस्थानानि ] उदयस्थान भी [न एव ] नहीं, [कानिचित् मार्गणास्थानानि न ] कोई मार्गणास्थान भी नहीं है; [जीवस्य ] जीवके [स्थितिबन्धस्थानानि नो ] स्थितिबंधस्थान भी नहीं [वा ] अथवा [संक्लेशस्थानानि न ] संक्लेशस्थान भी नहीं, [विशुद्धिस्थानानि ] विशुद्धिस्थान भी [न एव ] नहीं [वा ] अथवा [संयमलब्धिस्थानानि ] संयमलब्धिस्थान भी [नो ] नहीं हैं; [च ] और [जीवस्य ] जीवके [जीवस्थानानि ] जीवस्थान भी [न एव ] नहीं [वा ] अथवा [गुणस्थानानि ] गुणस्थान भी [न सन्ति ] नहीं हैं; [येन तु ] क्योंकि [एते सर्वे ] यह सब [पुद्गलद्रव्यस्य ] पुद्गलद्रव्यके [परिणामाः ] परिणाम हैं
टीका : — जो काला, हरा, पीला, लाल और सफे द वर्ण है वह सर्व ही जीवका नहीं है, क्योंकि वह पुद्गलद्रव्यके परिणाममय होनेसे (अपनी) अनुभूतिसे भिन्न है । १ । जो सुगन्ध