Samaysar (Hindi). Kalash: 47.

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(मालिनी)
परपरिणतिमुज्झत् खण्डयद्भेदवादा-
निदमुदितमखण्डं ज्ञानमुच्चण्डमुच्चैः
ननु कथमवकाशः कर्तृकर्मप्रवृत्ते-
रिह भवति कथं वा पौद्गलः कर्मबन्धः
।।४७।।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
है; इसलिये वह प्रधान नहीं माना गया अथवा तो ऐसा कारण है कि :ज्ञान बन्धका कारण
नहीं है जब तक ज्ञानमें मिथ्यात्वका उदय था तब तक वह अज्ञान कहलाता था और मिथ्यात्वके
जानेके बाद अज्ञान नहीं, किन्तु ज्ञान ही है उसमें जो कुछ चारित्रमोह सम्बन्धी विकार है उसका
स्वामी ज्ञानी नहीं, इसलिये ज्ञानीके बन्ध नहीं है; क्योंकि विकार जो कि बन्धरूप है और बन्धका
कारण है, वह तो बन्धकी पंक्तिमें है, ज्ञानकी पंक्तिमें नहीं
इस अर्थके समर्थनरूप कथन आगे
गाथाओंमें आयेगा ।।७२।।
यहाँ कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[परपरिणतिम् उज्झत् ] परपरिणतिको छोड़ता हुआ, [भेदवादान्
खण्डयत् ] भेदके क थनोंको तोड़ता हुआ, [इदम् अखण्डम् उच्चण्डम् ज्ञानम् ] यह अखण्ड और
अत्यंत प्रचण्ड ज्ञान [उच्चैः उदितम् ] प्रत्यक्ष उदयको प्राप्त हुआ है
[ननु ] अहो ! [इह ] ऐसे
ज्ञानमें [कर्तृकर्मप्रवृत्तिः ] (परद्रव्यके) क र्ताक र्मकी प्रवृत्तिका [कथम् अवकाशः ] अवकाश कैसे
हो सकता है ? [वा ] तथा [पौद्गलः कर्मबन्धः ] पौद्गलिक क र्मबंध भी [कथं भवति ] कैसे
हो सकता है ? (नहीं हो सकता
)
(ज्ञेयोंके निमित्तसे तथा क्षयोपशमके विशेषसे ज्ञानमें जो अनेक खण्डरूप आकार
प्रतिभासित होते थे उनसे रहित ज्ञानमात्र आकार अब अनुभवमें आया, इसलिये ज्ञानको ‘अखण्ड’
विशेषण दिया है
मतिज्ञानादि जो अनेक भेद कहे जाते थे उन्हें दूर करता हुआ उदयको प्राप्त
हुआ है, इसलिये ‘भेदके कथनोंको तोड़ता हुआ’ ऐसा कहा है परके निमित्तसे रागादिरूप
परिणमित होता था उस परिणतिको छोड़ता हुआ उदयको प्राप्त हुआ है, इसलिये ‘परपरिणतिको
छोड़ता हुआ’ ऐसा कहा है
परके निमित्तसे रागादिरूप परिणमित नहीं होता, बलवान है इसलिये
‘अत्यन्त प्रचण्ड’ कहा है )
भावार्थ :कर्मबन्ध तो अज्ञानसे हुई कर्ताकर्मकी प्रवृत्तिसे था अब जब भेदभावको
और परपरिणतिको दूर करके एकाकार ज्ञान प्रगट हुआ तब भेदरूप कारककी प्रवृत्ति मिट गई;
तब फि र अब बन्ध किसलिये होगा ? अर्थात् नहीं होगा
।४७।