Samaysar (Hindi). Gatha: 80-82.

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जीवपुद्गलपरिणामयोरन्योऽन्यनिमित्तमात्रत्वमस्ति तथापि न तयोः कर्तृकर्मभाव इत्याह
जीवपरिणामहेदुं कम्मत्तं पोग्गला परिणमंति
पोग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि ।।८०।।
ण वि कुव्वदि कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे
अण्णोण्णणिमित्तेण दु परिणामं जाण दोण्हं पि ।।८१।।
एदेण कारणेण दु कत्ता आदा सएण भावेण
पोग्गलकम्मकदाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं ।।८२।।
जीवपरिणामहेतुं कर्मत्वं पुद्गलाः परिणमन्ति
पुद्गलकर्मनिमित्तं तथैव जीवोऽपि परिणमति ।।८०।।
नापि करोति कर्मगुणान् जीवः कर्म तथैव जीवगुणान्
अन्योऽन्यनिमित्तेन तु परिणामं जानीहि द्वयोरपि ।।८१।।
एतेन कारणेन तु कर्ता आत्मा स्वकेन भावेन
पुद्गलकर्मकृतानां न तु कर्ता सर्वभावानाम् ।।८२।।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
भावार्थ :भेदज्ञान होनेके बाद, जीव और पुद्गलको कर्ताकर्मभाव है ऐसी बुद्धि नहीं
रहती; क्योंकि जब तक भेदज्ञान नहीं होता तब तक अज्ञानसे कर्ताकर्मभावकी बुद्धि होती है
यद्यपि जीवके परिणामको और पुद्गलके परिणामको अन्योन्य (परस्पर) निमित्तमात्रता है
तथापि उन (दोनों)को कर्ताकर्मपना नहीं है ऐसा अब कहते हैं :
जीवभावहेतु पाय पुद्गल कर्मरूप जु परिणमे
पुद्गलकरमके निमित्तसे यह जीव भी त्यों परिणमे ।।८०।।
जीव कर्मगुण करता नहीं, नहिं जीवगुण कर्म हि करे
अन्योन्यके हि निमित्तसे परिणाम दोनोंके बने ।।८१।।
इस हेतुसे आत्मा हुआ कर्ता स्वयं निज भाव ही
पुद्गलकरमकृत सर्व भावोंका कभी कर्ता नहीं ।।८२।।
गाथार्थ :[पुद्गलाः ] पुद्गल [जीवपरिणामहेतुं ] जीवके परिणामके निमित्तसे