Samaysar (Hindi). Gatha: 87.

< Previous Page   Next Page >


Page 161 of 642
PDF/HTML Page 194 of 675

 

background image
मिच्छत्तं पुण दुविहं जीवमजीवं तहेव अण्णाणं
अविरदि जोगो मोहो कोहादीया इमे भावा ।।८७।।
मिथ्यात्वं पुनर्द्विविधं जीवोऽजीवस्तथैवाज्ञानम्
अविरतिर्योगो मोहः क्रोधाद्या इमे भावाः ।।८७।।
मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरित्यादयो हि भावाः ते तु प्रत्येकं मयूरमुकुरन्दवज्जीवाजीवाभ्यां
भाव्यमानत्वाज्जीवाजीवौ तथा हियथा नीलहरितपीतादयो भावाः स्वद्रव्यस्वभावत्वेन मयूरेण
भाव्यमाना मयूर एव, यथा च नीलहरितपीतादयो भावाः स्वच्छताविकारमात्रेण मुकुरन्देन
भाव्यमाना मुकुरन्द एव, तथा मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरित्यादयो भावाः स्वद्रव्यस्वभावत्वेनाजीवेन
भाव्यमाना अजीव एव, तथैव च मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरित्यादयो भावाश्चैतन्यविकारमात्रेण
गाथा ८६में द्विक्रियावादीको मिथ्यादृष्टि कहा था उसके साथ सम्बन्ध करनेके लिये यहाँ ‘पुनः’ शब्द है
कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
१६१
21
मिथ्यात्व जीव अजीव दोविध, उभयविध अज्ञान है
अविरमण, योग रु मोह अरु क्रोधादि उभय प्रकार है ।।८७।।
गाथार्थ :[पुनः ] और, [मिथ्यात्वं ] जो मिथ्यात्व कहा है वह [द्विविधं ] दो
प्रकारका है[जीवः अजीवः ] एक जीवमिथ्यात्व और एक अजीवमिथ्यात्व; [तथा एव ]
और इसीप्रकार [अज्ञानम् ] अज्ञान, [अविरतिः ] अविरति, [योगः ] योग, [मोहः ] मोह तथा
[क्रोधाद्याः ] क्रोधादि कषाय
[इमे भावाः ] यह (सर्व) भाव जीव और अजीवके भेदसे दो-
दो प्रकारके हैं
टीका :मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति इत्यादि जो भाव हैं वे प्रत्येक, मयूर और
दर्पणकी भाँति, अजीव और जीवके द्वारा भाये जाते हैं, इसलिये वे अजीव भी हैं और जीव भी
हैं
इसे दृष्टान्तसे समझाते हैं :जैसे गहरा नीला, हरा, पीला आदि (वर्णरूप) भाव जो कि
मोरके अपने स्वभावसे मोरके द्वारा भाये जाते हैं (बनते हैं, होते हैं) वे मोर ही हैं और (दर्पणमें
प्रतिबिम्बरूपसे दिखाई देनेवाला) गहरा नीला, हरा, पीला इत्यादि भाव जो कि (दर्पणकी)
स्वच्छताके विकारमात्रसे दर्पणके द्वारा भाये जाते हैं वे दर्पण ही हैं; इसीप्रकार मिथ्यादर्शन, अज्ञान,
अविरति इत्यादि भाव जो कि अजीवके अपने द्रव्यस्वभावसे अजीवके द्वारा भाये जाते हैं वे अजीव
ही हैं और मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति इत्यादि भाव जो कि चैतन्यके विकारमात्रसे जीवके द्वारा