Samaysar (Hindi). Gatha: 89.

< Previous Page   Next Page >


Page 163 of 642
PDF/HTML Page 196 of 675

 

कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
१६३

यः खलु मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरित्यादिरजीवस्तदमूर्ताच्चैतन्यपरिणामादन्यत् मूर्तं पुद्गलकर्म; यस्तु मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरित्यादिर्जीवः स मूर्तात्पुद्गलकर्मणोऽन्यश्चैतन्यपरिणामस्य विकारः

मिथ्यादर्शनादिश्चैतन्यपरिणामस्य विकारः कुत इति चेत्
उवओगस्स अणाई परिणामा तिण्णि मोहजुत्तस्स
मिच्छत्तं अण्णाणं अविरदिभावो य णादव्वो ।।८९।।
उपयोगस्यानादयः परिणामास्त्रयो मोहयुक्तस्य
मिथ्यात्वमज्ञानमविरतिभावश्च ज्ञातव्यः ।।८९।।

उपयोगस्य हि स्वरसत एव समस्तवस्तुस्वभावभूतस्वरूपपरिणामसमर्थत्वे सत्यनादिवस्त्वन्तर- भूतमोहयुक्तत्वान्मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरिति त्रिविधः परिणामविकारः स तु तस्य

टीका :निश्चयसे जो मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति इत्यादि अजीव है सो तो, अमूर्तिक चैतन्यपरिणामसे अन्य मूर्तिक पुद्गलकर्म है; और जो मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति इत्यादि जीव है वह मूर्तिक पुद्गलकर्मसे अन्य चैतन्य परिणामका विकार है ।।८८।।

अब पुनः प्रश्न करता है किमिथ्यादर्शनादि चैतन्यपरिणामका विकार कहाँसे हुआ ? इसका उत्तर कहते हैं :

है मोहयुत उपयोगका परिणाम तीन अनादिका

मिथ्यात्व अरु अज्ञान, अविरतभाव ये त्रय जानना ।।८९।।

गाथार्थ :[मोहयुक्त स्य ] अनादिसे मोहयुक्त होनेसे [उपयोगस्य ] उपयोगके [अनादयः ] अनादिसे लेकर [त्रयः परिणामाः ] तीन परिणाम हैं; वे [मिथ्यात्वम् ] मिथ्यात्व, [अज्ञानम् ] अज्ञान [च अविरतिभावः ] और अविरतिभाव (ऐसे तीन) [ज्ञातव्यः ] जानना चाहिये

टीका :यद्यपि निश्चयसे अपने निजरससे ही सर्व वस्तुओंकी अपने स्वभावभूत स्वरूप- परिणमनमें सामर्थ्य है, तथापि (आत्माको) अनादिसे अन्य-वस्तुभूत मोहके साथ संयुक्तपना होनेसे, आत्माके उपयोगका, मिथ्यादर्शन, अज्ञान और अविरतिके भेदसे तीन प्रकारका परिणामविकार है उपयोगका वह परिणामविकार, स्फ टिककी स्वच्छताके परिणामविकारकी भाँति,