स्फ टिकस्वच्छताया इव परतोऽपि प्रभवन् दृष्टः । यथा हि स्फ टिकस्वच्छतायाः स्वरूप-
परिणामसमर्थत्वे सति कदाचिन्नीलहरितपीततमालकदलीकांचनपात्रोपाश्रययुक्तत्वान्नीलो हरितः
पीत इति त्रिविधः परिणामविकारो दृष्टः, तथोपयोगस्यानादिमिथ्यादर्शनाज्ञानाविरतिस्वभाव-
वस्त्वन्तरभूतमोहयुक्तत्वान्मिथ्यादर्शनमज्ञानमविरतिरिति त्रिविधः परिणामविकारो दृष्टव्यः ।
अथात्मनस्त्रिविधपरिणामविकारस्य कर्तृत्वं दर्शयति —
एदेसु य उवओगो तिविहो सुद्धो णिरंजणो भावो ।
जं सो करेदि भावं उवओगो तस्स सो कत्ता ।।९०।।
एतेषु चोपयोगस्त्रिविधः शुद्धो निरञ्जनो भावः ।
यं स करोति भावमुपयोगस्तस्य स कर्ता ।।९०।।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
परके कारण ( – परकी उपाधिसे) उत्पन्न होता दिखाई देता है । इसी बातको स्पष्ट करते हैं : —
जैसे स्फ टिककी स्वच्छताकी स्वरूप-परिणमनमें (अपने उज्ज्वलतारूप स्वरूपसे परिणमन
करनेमें) सामर्थ्य होने पर भी, कदाचित् (स्फ टिकको) काले, हरे और पीले ऐसे तमाल, केल
और सोनेके पात्ररूपी आधारका संयोग होनेसे, स्फ टिककी स्वच्छताका, काला, हरा और पीला
ऐसे तीन प्रकारका परिणामविकार दिखाई देता है, उसीप्रकार (आत्माको) अनादिसे मिथ्यादर्शन,
अज्ञान और अविरति जिसका स्वभाव है ऐसे अन्य-वस्तुभूत मोहका संयोग होनेसे, आत्माके
उपयोगका, मिथ्यादर्शन, अज्ञान और अविरति ऐसे तीन प्रकारका परिणामविकार समझना चाहिये
।
भावार्थ : — आत्माके उपयोगमें यह तीन प्रकारका परिणामविकार अनादि कर्मके निमित्तसे
है । ऐसा नहीं है कि पहले यह शुद्ध ही था और अब इसमें नया परिणामविकार हो गया है । यदि
ऐसा हो तो सिद्धोंको भी नया परिणामविकार होना चाहिये । किन्तु ऐसा तो नहीं होता । इसलिये
यह समझना चाहिये कि वह अनादिसे है ।।८९।।
अब आत्माके तीन प्रकारके परिणामविकारका कर्तृत्व बतलाते हैं : —
इससे हि है उपयोग त्रयविध, शुद्ध निर्मल भाव जो ।
जो भाव कुछ भी वह करे, उस भावका कर्ता बने ।।९०।।
गाथार्थ : — [एतेषु च ] अनादिसे ये तीन प्रकारके परिणामविकार होनेसे [उपयोगः ]
आत्माका उपयोग — [शुद्धः ] यद्यपि (शुद्धनयसे) शुद्ध, [निरञ्जनः ] निरंजन [भावः ] (एक)