Samaysar (Hindi). Gatha: 94.

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कथमज्ञानात्कर्म प्रभवतीति चेत्
तिविहो एसुवओगो अप्पवियप्पं करेदि कोहोऽहं
कत्ता तस्सुवओगस्स होदि सो अत्तभावस्स ।।९४।।
त्रिविध एष उपयोग आत्मविकल्पं करोति क्रोधोऽहम्
कर्ता तस्योपयोगस्य भवति स आत्मभावस्य ।।९४।।
एष खलु सामान्येनाज्ञानरूपो मिथ्यादर्शनाज्ञानाविरतिरूपस्त्रिविधः सविकारश्चैतन्यपरिणामः
परात्मनोरविशेषदर्शनेनाविशेषज्ञानेनाविशेषरत्या च समस्तं भेदमपह्नुत्य भाव्यभावकभावापन्न-
योश्चेतनाचेतनयोः सामान्याधिकरण्येनानुभवनात्क्रोधोऽहमित्यात्मनो विकल्पमुत्पादयति; ततोऽय-
मात्मा क्रोधोऽहमिति भ्रान्त्या सविकारेण चैतन्यपरिणामेन परिणमन् तस्य सविकारचैतन्य-
परिणामरूपस्यात्मभावस्य कर्ता स्यात्
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
पर, रागादिका कर्ता आत्मा नहीं होता, ज्ञाता ही रहता है ।।९३।।
अब यह प्रश्न करता है कि अज्ञानसे कर्म कैसे उत्पन्न होता है ? इसका उत्तर देते हुए
कहते हैं कि :
‘मैं क्रोध’ आत्मविकल्प यह, उपयोग त्रयविध आचरे
तब जीव उस उपयोगरूप जीवभावका कर्ता बने ।।९४।।
गाथार्थ :[त्रिविधः ] तीन प्रकारका [एषः ] यह [उपयोगः ] उपयोग [अहम्
क्रोधः ] ‘मैं क्रोध हूँ’ ऐसा [आत्मविकल्पं ] अपना विकल्प [करोति ] करता है; इसलिये
[सः ] आत्मा [तस्य उपयोगस्य ] उस उपयोगरूप [आत्मभावस्य ] अपने भावका [कर्ता ]
कर्ता [भवति ] होता है
टीका :वास्तवमें यह सामान्यतया अज्ञानरूप जो मिथ्यादर्शनअज्ञान-अविरतिरूप
तीन प्रकारका सविकार चैतन्यपरिणाम है वह, परके और अपने अविशेष दर्शनसे, अविशेष ज्ञानसे
और अविशेष रति (लीनता)से समस्त भेदको छिपाकर, भाव्यभावकभावको प्राप्त चेतन और
अचेतनका सामान्य अधिकरणसे (
मानों उनका एक आधार हो इस प्रकार) अनुभव करनेसे, ‘मैं
क्रोध हूँ’ ऐसा अपना विकल्प उत्पन्न करता है; इसलिये ‘मैं क्रोध हूँ’ ऐसी भ्रान्तिके कारण जो
सविकार (विकारयुक्त) है ऐसे चैतन्यपरिणामरूप परिणमित होता हुआ यह आत्मा उस सविकार
चैतन्यपरिणामरूप अपने भावका कर्ता होता है