Samaysar (Hindi). Gatha: 97.

< Previous Page   Next Page >


Page 174 of 642
PDF/HTML Page 207 of 675

 

background image
तथेन्द्रियविषयीकृतरूपिपदार्थतिरोहितकेवलबोधतया मृतककलेवरमूर्च्छितपरमामृतविज्ञानघनतया च
तथाविधस्य भावस्य कर्ता प्रतिभाति
ततः स्थितमेतद् ज्ञानान्नश्यति कर्तृत्वम्
एदेण दु सो कत्ता आदा णिच्छयविदूहिं परिकहिदो
एवं खलु जो जाणदि सो मुंचदि सव्वकत्तित्तं ।।९७।।
एतेन तु स कर्तात्मा निश्चयविद्भिः परिकथितः
एवं खलु यो जानाति सो मुञ्चति सर्वकर्तृत्वम् ।।९७।।
१७४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
शुद्ध चैतन्यधातु रुकी होनेसे तथा इन्द्रियोंके विषयरूप किये गये रूपी पदार्थोंके द्वारा (अपना)
केवल बोध (
ज्ञान) ढँका हुआ होनेसे और मृतक क्लेवर (शरीर)के द्वारा परम अमृतरूप
विज्ञानघन (स्वयं) मूर्च्छित हुआ होनेसे उस प्रकारके भावका कर्ता प्रतिभासित होता है
भावार्थ :यह आत्मा अज्ञानके कारण, अचेतन कर्मरूप भावकके क्रोधादि भाव्यको
चेतन भावकके साथ एकरूप मानता है; और वह, जड़ ज्ञेयरूप धर्मादिद्रव्योंको भी ज्ञायकके
साथ एकरूप मानता है
इसलिये वह सविकार और सोपाधिक चैतन्यपरिणामका कर्ता
होता है
यहाँ, क्रोधादिके साथ एकत्वकी मान्यतासे उत्पन्न होनेवाला कर्तृत्व समझानेके लिये
भूताविष्ट पुरुषका दृष्टान्त दिया है और धर्मादिक अन्य द्रव्योंके साथ एकत्वकी मान्यतासे उत्पन्न
होनेवाला कर्तृत्व समझानेके लिये ध्यानाविष्ट पुरुषका दृष्टान्त दिया है
।।९६।।
‘इससे (पूर्वोक्त कारणसे) यह सिद्ध हुआ कि ज्ञानसे कर्तृत्वका नाश होता है’ यही सब
कहते हैं :
इस हेतुसे परमार्थविद् कर्त्ता कहें इस आत्मको
यह ज्ञान जिसको होय वह छोड़े सकल कर्तृत्वको ।।९७।।
गाथार्थ :[एतेन तु ] इस (पूर्वोक्त) कारणसे [निश्चयविद्भिः ] निश्चयके जाननेवाले
ज्ञानियोंने [सः आत्मा ] इस आत्माको [कर्ता ] कर्ता [परिकथितः ] कहा है[एवं खलु ] ऐसा
निश्चयसे [यः ] जो [जानाति ] जानता है [सः ] वह (ज्ञानी होता हुआ) [सर्वकर्तृत्वम् ]
सर्वकर्तृत्वको [मुञ्चति ] छोड़ता है