पुद्गलकर्मणः किल पुद्गलद्रव्यमेवैकं कर्तृ; तद्विशेषाः मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगा बन्धस्य
सामान्यहेतुतया चत्वारः कर्तारः । ते एव विकल्प्यमाना मिथ्यादृष्टयादिसयोगकेवल्यन्तास्त्रयोदश
कर्तारः । अथैते पुद्गलकर्मविपाकविकल्पत्वादत्यन्तमचेतनाः सन्तस्त्रयोदश कर्तारः केवला एव
यदि व्याप्यव्यापकभावेन किंचनापि पुद्गलकर्म कुर्युस्तदा कुर्युरेव; किं जीवस्यात्रापतितम् ?
अथायं तर्कः — पुद्गलमयमिथ्यात्वादीन् वेदयमानो जीवः स्वयमेव मिथ्यादृष्टिर्भूत्वा पुद्गलकर्म
करोति । स किलाविवेकः, यतो न खल्वात्मा भाव्यभावकभावाभावात् पुद्गलद्रव्यमयमिथ्यात्वादि-
वेदकोऽपि, कथं पुनः पुद्गलकर्मणः कर्ता नाम ? अथैतदायातम् — यतः पुद्गलद्रव्यमयानां चतुर्णां
सामान्यप्रत्ययानां विकल्पास्त्रयोदश विशेषप्रत्यया गुणशब्दवाच्याः केवला एव कुर्वन्ति कर्माणि,
ततः पुद्गलकर्मणामकर्ता जीवो, गुणा एव तत्कर्तारः । ते तु पुद्गलद्रव्यमेव । ततः स्थितं
पुद्गलकर्मणः पुद्गलद्रव्यमेवैकं कर्तृ ।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
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टीका : — वास्तवमें पुद्गलकर्मका, पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है; उसके विशेष —
मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग बन्धके सामान्य हेतु होनेसे चार कर्ता हैं; वे ही भेदरूप
किये जाने पर (अर्थात् उन्हीं के भेद करने पर), मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगकेवली पर्यंत तेरह
कर्ता है । अब, जो पुद्गलकर्मके विपाकके प्रकार होनेसे अत्यन्त अचेतन हैं ऐसे तेरह कर्ता ही
केवल व्याप्यव्यापकभावसे यदि कुछ भी पुद्गलकर्मको करें तो भले करें; इसमें जीवका क्या
आया ? (कुछ भी नहीं ।) यहाँ यह तर्क है कि ‘‘पुद्गलमय मिथ्यात्वादिको भोगता हुआ जीव
स्वयं ही मिथ्यादृष्टि होकर पुद्गलकर्मको करता है’’ । (इसका समाधान यह है कि : — ) यह
तर्क वास्तवमें अविवेक है, क्योंकि भाव्यभावकभावका अभाव होनेसे आत्मा निश्चयसे
पुद्गलद्रव्यमय मिथ्यात्वादिका भोक्ता भी नहीं है, तब फि र पुद्गलकर्मका कर्ता कैसे हो सकता
है ? इसलिये यह सिद्ध हुआ कि — जो पुद्गलद्रव्यमय चार सामान्यप्रत्ययोंके भेदरूप तेरह
विशेषप्रत्यय हैं जो कि ‘गुण’ शब्दसे (गुणस्थान नामसे) कहे जाते हैं वे ही मात्र कर्मोंको करते
हैं, इसलिये जीव पुदगलकर्मोंका अकर्ता है, किन्तु ‘गुण’ ही उनके कर्ता हैं; और वे ‘गुण’ तो
पुद्गलद्रव्य ही हैं; इससे यह सिद्ध हुआ कि पुद्गलकर्मका, पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है ।
भावार्थ : — शास्त्रोंमें प्रत्ययोंको बन्धका कर्ता कहा गया है । गुणस्थान भी विशेष प्रत्यय
ही हैं, इसलिये ये गुणस्थान बन्धके कर्ता हैं अर्थात् पुद्गलकर्मके कर्ता हैं । और मिथ्यात्वादि
सामान्य प्रत्यय या गुणस्थानरूप विशेष प्रत्यय अचेतन पुद्गलद्रव्यमय ही हैं; इससे यह सिद्ध
हुआ कि पुद्गलद्रव्य ही पुद्गलकर्मका कर्ता है, जीव नहीं । जीवको पुद्गलकर्मका कर्ता मानना
अज्ञान है ।।१०९ से ११२।।