Samaysar (Hindi). Gatha: 116-120.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
अथ पुद्गलद्रव्यस्य परिणामस्वभावत्वं साधयति सांख्यमतानुयायिशिष्यं प्रति
जीवे ण सयं बद्धं ण सयं परिणमदि कम्मभावेण
जदि पोग्गलदव्वमिणं अप्परिणामी तदा होदि ।।११६।।
कम्मइयवग्गणासु य अपरिणमंतीसु कम्मभावेण
संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा ।।११७।।
जीवो परिणामयदे पोग्गलदव्वाणि कम्मभावेण
ते सयमपरिणमंते कहं णु परिणामयदि चेदा ।।११८।।
अह सयमेव हि परिणमदि कम्मभावेण पोग्गलं दव्वं
जीवो परिणामयदे कम्मं कम्मत्तमिदि मिच्छा ।।११९।।
णियमा कम्मपरिणदं कम्मं चिय होदि पोग्गलं दव्वं
तह तं णाणावरणाइपरिणदं मुणसु तच्चेव ।।१२०।।

अब सांख्यमतानुयायी शिष्यके प्रति पुद्गलद्रव्यका परिणामस्वभावत्व सिद्ध करते हैं (अर्थात् सांख्यमतवाले प्रकृति और पुरुषको अपरिणामी मानते हैं उन्हें समझाते हैं) :

जीवमें स्वयं नहिं बद्ध, अरु नहिं कर्मभावों परिणमे
तो वो हि पुद्गलद्रव्य भी, परिणमनहीन बने अरे ! ११६।।
जो वर्गणा कार्माणकी, नहिं कर्मभावों परिणमे
संसारका हि अभाव अथवा सांख्यमत निश्चित हुवे ! ११७।।
जो कर्मभावों परिणमाये जीव पुद्गलद्रव्यको
क्यों जीव उसको परिणमाये, स्वयं नहिं परिणमत जो ? ११८।।
स्वयमेव पुद्गलद्रव्य अरु, जो कर्मभावों परिणमे
जीव परिणमाये कर्मको, कर्मत्वमेंमिथ्या बने ।।११९।।
पुद्गलदरव जो कर्मपरिणत, नियमसे कर्म हि बने
ज्ञानावरणइत्यादिपरिणत, वो हि तुम जानो उसे ।।१२०।।