Samaysar (Hindi). Gatha: 121-124.

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जीवस्य परिणामित्वं साधयति
ण सयं बद्धो कम्मे ण सयं परिणमदि कोहमादीहिं
जदि एस तुज्झ जीवो अप्परिणामी तदा होदि ।।१२१।।
अपरिणमंतम्हि सयं जीवे कोहादिएहिं भावेहिं
संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा ।।१२२।।
पोग्गलकम्मं कोहो जीवं परिणामएदि कोहत्तं
तं सयमपरिणमंतं कहं णु परिणामयदि कोहो ।।१२३।।
अह सयमप्पा परिणमदि कोहभावेण एस दे बुद्धी
कोहो परिणामयदे जीवं कोहत्तमिदि मिच्छा ।।१२४।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
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परिणामशक्तिः ] स्वभावभूत परिणमनशक्ति [खलु अविघ्ना स्थिता ] निर्विघ्न सिद्ध हुई [तस्यां
स्थितायां ] उसके सिद्ध होने पर, [सः आत्मनः यम् भावं करोति ] पुद्गलद्रव्य अपने जिस भावको
क रता है [तस्य सः एव कर्ता ] उसका वह पुद्गलद्रव्य ही क र्ता है
भावार्थ :सर्व द्रव्य परिणमनस्वभाववाले हैं, इसलिये वे अपने अपने भावके स्वयं ही
कर्ता हैं पुद्गलद्रव्य भी अपने जिस भावको करता है उसका वह स्वयं ही कर्ता है ।।६४।।
अब जीवका परिणामित्व सिद्ध करते हैं :
नहिं बद्धकर्म, स्वयं नहीं जो क्रोधभावों परिणमे
तो जीव यह तुझ मतविषैं परिणमनहीन बने अरे ! १२१।।
क्रोधादिभावों जो स्वयं नहिं जीव आप हि परिणमे
संसारका हि अभाव अथवा सांख्यमत निश्चित हुवे ! १२२।।
जो क्रोधपुद्गलकर्मजीवको, परिणमाये क्रोधमें
क्यों क्रोध उसको परिणमाये जो स्वयं नहिं परिणमे ? १२३।।
अथवा स्वयं जीव क्रोधभावों परिणमेतुझ बुद्धि है
तो क्रोध जीवको परिणमाये क्रोधमेंमिथ्या बने ।।१२४।।