गाथार्थ : — [यदि ] यदि [पुद्गलद्रव्यस्य ] पुद्गलद्रव्यका [जीवेन सह चैव ] जीवके साथ ही [कर्मपरिणामः ] क र्मरूप परिणाम होता है (अर्थात् दोनों मिलकर ही क र्मरूप परिणमित होते हैं ) — ऐसा माना जाये तो [एवं ] इसप्रकार [पुद्गलजीवौ द्वौ अपि ] पुद्गल और जीव दोनों [खलु ] वास्तवमें [कर्मत्वम् आपन्नौ ] क र्मत्वको प्राप्त हो जायें । [तु ] परन्तु [कर्मभावेन ] क र्मभावसे [परिणामः ] परिणाम तो [पुद्गलद्रव्यस्य एकस्य ] पुद्गलद्रव्यके एक के ही होता है, [तत् ] इसलिये [जीवभावहेतुभिः विना ] जीवभावरूप निमित्तसे रहित ही अर्थात् भिन्न ही [कर्मणः ] क र्मका [परिणामः ] परिणाम है ।
टीका : — यदि पुद्गलद्रव्यके, कर्मपरिणामके निमित्तभूत ऐसे रागादि-अज्ञान-परिणामसे परिणत जीवके साथ ही (अर्थात् दोनों मिलकर ही), कर्मरूप परिणाम होता है — ऐसा वितर्क उपस्थित किया जाये तो, जैसे मिली हुई हल्दी और फि टकरीका – दोनोंका लाल रंगरूप परिणाम