Samaysar (Hindi). Gatha: 141.

< Previous Page   Next Page >


Page 214 of 642
PDF/HTML Page 247 of 675

 

background image
एकस्य तु परिणामो जायते जीवस्य रागादिभिः
तत्कर्मोदयहेतुभिर्विना जीवस्य परिणामः ।।१४०।।
यदि जीवस्य तन्निमित्तभूतविपच्यमानपुद्गलकर्मणा सहैव रागाद्यज्ञानपरिणामो भवतीति
वितर्कः, तदा जीवपुद्गलकर्मणोः सहभूतसुधाहरिद्रयोरिव द्वयोरपि रागाद्यज्ञानपरिणामापत्तिः अथ
चैकस्यैव जीवस्य भवति रागाद्यज्ञानपरिणामः, ततः पुद्गलकर्मविपाकाद्धेतोः पृथग्भूत एव जीवस्य
परिणामः
किमात्मनि बद्धस्पृष्टं किमबद्धस्पृष्टं कर्मेति नयविभागेनाह
जीवे कम्मं बद्धं पुट्ठं चेदि ववहारणयभणिदं
सुद्धणयस्स दु जीवे अबद्धपुट्ठं हवदि कम्मं ।।१४१।।
२१४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
[रागादित्वम् आपन्ने ] रागादिभावको प्राप्त हो जायें [तु ] परन्तु [रागादिभिः परिणामः ]
रागादिभावसे परिणाम तो [जीवस्य एकस्य ] जीवके एकके ही [जायते ] होता है, [तत् ] इसलिये
[कर्मोदयहेतुभिः विना ] क र्मोदयरूप निमित्तसे रहित ही अर्थात् भिन्न ही [जीवस्य ] जीवका
[परिणामः ] परिणाम है
टीका :यदि जीवके, रागादि-अज्ञानपरिणामके निमित्तभूत उदयागत पुद्गलकर्मके साथ
ही (दोनों एकत्रित होकर ही), रागादि-अज्ञानपरिणाम होता हैऐसा वितर्क उपस्थित किया जाये
तो, जैसे मिली हुई फि टकरी और हल्दीदोनोंका लाल रंगरूप परिणाम होता है उसीप्रकार, जीव
और पुद्गलकर्म दोनोंके रागादि-अज्ञानपरिणामकी आपत्ति आ जावे परन्तु एक जीवके ही
रागादि-अज्ञानपरिणाम तो होता है; इसलिये पुद्गलकर्मका उदय जो कि जीवके रागादि-
अज्ञानपरिणामका निमित्त है उससे भिन्न ही जीवका परिणाम है
भावार्थ :यदि यह माना जाये कि जीव और पुद्गलकर्म मिलकर रागादिरूप परिणमते
हैं तो दोनोंके रागादिरूप परिणाम सिद्ध हों किन्तु पुद्गलकर्म तो रागादिरूप (जीवरागादिरूप)
कभी नहीं परिणम सकता; इसलिये पुद्गलकर्मका उदय जो कि रागादिपरिणामका निमित्त है उससे
भिन्न ही जीवका परिणाम है
।।१३९-१४०।।
अब यहाँ नयविभागसे यह कहते हैं कि ‘आत्मामें कर्म बद्धस्पृष्ट है या अबद्धस्पृष्ट है’
है कर्म जीवमें बद्धस्पृष्टजु कथन यह व्यवहारका
पर बद्धस्पृष्ट न कर्म जीवमेंकथन है नय शुद्धका ।।१४१।।