यदि जीवस्य तन्निमित्तभूतविपच्यमानपुद्गलकर्मणा सहैव रागाद्यज्ञानपरिणामो भवतीति वितर्कः, तदा जीवपुद्गलकर्मणोः सहभूतसुधाहरिद्रयोरिव द्वयोरपि रागाद्यज्ञानपरिणामापत्तिः । अथ चैकस्यैव जीवस्य भवति रागाद्यज्ञानपरिणामः, ततः पुद्गलकर्मविपाकाद्धेतोः पृथग्भूत एव जीवस्य परिणामः ।
[कर्मोदयहेतुभिः विना ] क र्मोदयरूप निमित्तसे रहित ही अर्थात् भिन्न ही [जीवस्य ] जीवका
[परिणामः ] परिणाम है ।
टीका : — यदि जीवके, रागादि-अज्ञानपरिणामके निमित्तभूत उदयागत पुद्गलकर्मके साथ ही (दोनों एकत्रित होकर ही), रागादि-अज्ञानपरिणाम होता है — ऐसा वितर्क उपस्थित किया जाये तो, जैसे मिली हुई फि टकरी और हल्दी – दोनोंका लाल रंगरूप परिणाम होता है उसीप्रकार, जीव और पुद्गलकर्म दोनोंके रागादि-अज्ञानपरिणामकी आपत्ति आ जावे । परन्तु एक जीवके ही रागादि-अज्ञानपरिणाम तो होता है; इसलिये पुद्गलकर्मका उदय जो कि जीवके रागादि- अज्ञानपरिणामका निमित्त है उससे भिन्न ही जीवका परिणाम है ।
भावार्थ : — यदि यह माना जाये कि जीव और पुद्गलकर्म मिलकर रागादिरूप परिणमते हैं तो दोनोंके रागादिरूप परिणाम सिद्ध हों । किन्तु पुद्गलकर्म तो रागादिरूप (जीवरागादिरूप) कभी नहीं परिणम सकता; इसलिये पुद्गलकर्मका उदय जो कि रागादिपरिणामका निमित्त है उससे भिन्न ही जीवका परिणाम है ।।१३९-१४०।।