(उपजाति)
एकस्य भोक्ता न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७५।।
(उपजाति)
एकस्य जीवो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७६।।
(उपजाति)
एकस्य सूक्ष्मो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७७।।
२२०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
श्लोकार्थ : — [भोक्ता ] जीव भोक्ता है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न
तथा ] जीव भोक्ता नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ]
चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः तत्त्ववेदी
च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप
जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।७५।
श्लोकार्थ : — [जीवः ] जीव जीव है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न
तथा ] जीव जीव नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप
जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः तत्त्ववेदी
च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप
जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।७६।
श्लोकार्थ : — [सूक्ष्मः ] जीव सूक्ष्म है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न
तथा ] जीव सूक्ष्म नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ]
चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः तत्त्ववेदी
च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप