Samaysar (Hindi). Kalash: 78-80.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
कर्ता-कर्म अधिकार
२२१

(उपजाति) एकस्य हेतुर्न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात- स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७८।।

(उपजाति) एकस्य कार्यं न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात- स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७९।।

(उपजाति) एकस्य भावो न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात- स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।८०।।

जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।७७।

श्लोकार्थ :[हेतुः ] जीव हेतु (कारण) है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव हेतु (कारण) नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।७८।

श्लोकार्थ :[कार्यं ] जीव कार्य है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव कार्य नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।७९।

श्लोकार्थ :[भावः ] जीव भाव है (अर्थात् भावरूप है) [एकस्य ] ऐसा एक नयका