(उपजाति)
एकस्य चैको न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।८१।।
(उपजाति)
एकस्य सान्तो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।८२।।
(उपजाति)
एकस्य नित्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
२२२
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
पक्ष है और [न तथा ] जीव भाव नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार
[चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः
तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ]
चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।८०।
श्लोकार्थ : — [एकः ] जीवएक है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ]
जीव एक नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप
जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः तत्त्ववेदी
च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ] चित्स्वरूप
जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।८१।
श्लोकार्थ : — [सान्तः ] जीव सान्त (-अन्त सहित) है [एकस्य ] ऐसा एक नयका
पक्ष है और [न तथा ] जीव सान्त नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार
[चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [यः
तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ]
चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है ।८२।
श्लोकार्थ : — [नित्यः ] जीव नित्य है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न