Samaysar (Hindi). Kalash: 86-88.

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(उपजाति)
एकस्य चेत्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव
।।८६।।
(उपजाति)
एकस्य दृश्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव
।।८७।।
(उपजाति)
एकस्य वेद्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव
।।८८।।
२२४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
श्लोकार्थ :[चेत्यः ] जीव चेत्य (-चेताजानेयोग्य) है [एकस्य ] ऐसा एक नयका
पक्ष है और [न तथा ] जीव चेत्य नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार
[चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं
[यः
तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ]
चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है
।८६।
श्लोकार्थ :[दृश्यः ] जीव दृश्य (देखे जाने योग्य) है [एकस्य ] ऐसा एक नयका
पक्ष है और [न तथा ] जीव दृश्य नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे; [इति ] इसप्रकार
[चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं
[यः
तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ] निरन्तर [चित् ]
चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है
।८७।
श्लोकार्थ :[वेद्यः ] जीव वेद्य (वेदनमें आने योग्य, ज्ञात होने योग्य) है [एकस्य ]
ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव वेद्य नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष हैे;
[इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो
पक्षपात हैं
[यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य ] उसे [नित्यं ]