Samaysar (Hindi). Gatha: 144 Kalash: 92.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-

(स्वागता) चित्स्वभावभरभावितभावा- भावभावपरमार्थतयैकम् बन्धपद्धतिमपास्य समस्तां चेतये समयसारमपारम् ।।९२।।

पक्षातिक्रान्त एव समयसार इत्यवतिष्ठते
सम्मद्दंसणणाणं एसो लहदि त्ति णवरि ववदेसं
सव्वणयपक्खरहिदो भणिदो जो सो समयसारो ।।१४४।।
सम्यग्दर्शनज्ञानमेष लभत इति केवलं व्यपदेशम्
सर्वनयपक्षरहितो भणितो यः स समयसारः ।।१४४।।
करे तो मिथ्यात्वके अतिरिक्त मात्र चारित्रमोहका राग रहता है; और जब नयपक्षको छोड़कर
वस्तुस्वरूपको केवल जानता ही है तब उस समय श्रुतज्ञानी भी केवलीकी भाँति वीतराग जैसा
ही होता है ऐसा जानना
।।१४३।।
अब इस कलशमें यह कहते हैं कि वह आत्मा ऐसा अनुभव करता है :

श्लोकार्थ :[चित्स्वभाव-भर-भावित-भाव-अभाव-भाव-परमार्थतया एकम् ] चित्- स्वभावके पुंज द्वारा ही अपने उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य किये जाते हैंऐसा जिसका परमार्थ स्वरूप है, इसलिये जो एक है ऐसे [अपारम् समयसारम् ] अपार समयसारको मैं, [समस्तां बन्धपद्धतिम् ] समस्त बन्धपद्धतिको [अपास्य ] दूर करके अर्थात् कर्मोदयसे होनेवाले सर्व भावोंको छोड़कर, [चेतये ] अनुभव करता हूँ

भावार्थ :निर्विकल्प अनुभव होने पर, जिसके केवलज्ञानादि गुणोंका पार नहीं है ऐसे समयसाररूपी परमात्माका अनुभव ही वर्तता है, ‘मैं अनुभव करता हूँ ’ ऐसा भी विकल्प नहीं होताऐसा जानना ।९२।

अब यह कहते हैं कि नियमसे यह सिद्ध है कि पक्षातिक्रान्त ही समयसार है :
सम्यक्त्व और सुज्ञानकी, जिस एकको संज्ञा मिले
नयपक्ष सकल विहीन भाषित, वह ‘समयका सार’ है ।।१४४।।
गाथार्थ :[यः ] जो [सर्वनयपक्षरहितः ] सर्व नयपक्षोंसे रहित [भणितः ] कहा गया