Samaysar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 27 of 675

 

[२४ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
अनियत, विशेष और संयुक्तइन पाँच
अध्यवसानादिभाव पुद्गलमय हैं, जीव नहीं हैं,
भावोंसे रहित होने सम्बन्धी कथन
। .........
ऐसा कथन
।...........................
१४
४५
अध्यवसानादिभावको व्यवहारनयसे जीव कहा
शुद्धनयके विषयभूत आत्माको जानना सो
गया है; तथा उसका दृष्टांत
। ........
४६-४८
सम्यग्ज्ञान है, ऐसा कथन
। ...................
१५
परमार्थरूप जीवका स्वरूप
। ...........
४९
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप आत्मा ही साधुके
वर्णको आदि लेकर गुणस्थान पर्यन्त जितने भाव
सेवन करने योग्य है, उसका दृष्टांतसहित
कथन
हैं वे जीवके नहीं हैं, ऐसा छह गाथाओंमें
कथन
। ...................................
१६-१८
। .................................
५०-५५

शुद्धनयके विषयभूत आत्माको जब तक न जाने

ये वर्णादिक भाव जीवके हैं ऐसा व्यवहारनय
तब तक वे जीव अज्ञानी हैं
।.........
१९
कहता है, निश्चयनय नहीं कहता, ऐसा
दृष्टांतपूर्वक कथन
अप्रतिबुद्ध(अज्ञानी)को कैसे पहिचाना जा
। ...................
५६-६०
सकता है ? ..............................
२०-२२
२३-२५
वर्णादिक भावोंका जीवके साथ तादात्म्य कोई
अज्ञानी माने, उसका निषेध
। ........
६१-६८
अज्ञानीको समझानेकी रीति
। ..............
२. कर्ताकर्म अधिकार
अज्ञानीने जीवदेहको एक देखकर तीर्थङ्करकी
अज्ञानी जीव क्रोधादिमें जब तक वर्तता है तब
स्तुतिका प्रश्न किया, उसका उत्तर
। .
२६-२७
तक कर्मका बंध करता है
। ........
६९-७०
इस उत्तरमें जीव देहकी भिन्नताका दृश्य तथा
आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होने पर बन्ध नहीं
जितेन्द्रिय, जितमोह और क्षीणमोह
। ..
२८-३३
होता
। ...................................
७१
७२
७३
चारित्रमें जो प्रत्याख्यान कहनेमें आता है वह क्या
ज्ञानमात्रसे ही बन्धका निरोध कैसे होता है ?
आस्रवोंसे निवृत्त होनेका विधान
है ? ऐसे शिष्यके प्रश्नका उत्तर दिया है कि
प्रत्याख्यान ज्ञान ही है
। ......
। ................
३४-३५
ज्ञान होनेका और आस्रवोंकी निवृत्तिका समकाल
अनुभूति द्वारा परभावके तथा ज्ञेयभावके
कैसे है ? उसका कथन
। ...........
७४
७५
भेदज्ञानके प्रकार
।.......................
३६-
३७
ज्ञानस्वरूप हुए आत्माका चिह्न
। .......
दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप परिणत हुए आत्माका
आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होने पर
स्वरूप कह कर रंगभूमिका स्थल (३८
गाथाओंमें) पूर्ण
आत्मा ज्ञानी होता है तब कर्तृकर्मभाव भी नहीं
होता
। ..............................
७६-७९
। ...................................
३८
जीव-पुद्गलकर्मके परस्पर नमित्त-नैमित्तिक
१. जीव-अजीव अधिकार
भाव है तो भी कर्तृकर्मभाव नही कहा जा
सकता

जीवका स्वरूप न जाननेसे अज्ञानीजन जीवकी

। ................................
८०-८२
कल्पना अध्यवसानादि भावरूप अन्यथा
करते हैं, इस प्रकारका वर्णन
निश्चयनयसे आत्मा और कर्मके कर्तृकर्मभाव
। .......
३९-४३
और भोक्तृ भोग्यभाव नहीं हैं, अपने में ही
कर्तृकर्मभाव और भोक्तृ भोग्यभाव हैं

जीवका स्वरूप अन्यथा कल्पते हैं, उनके

८३
निषेधकी गाथा
। .........................
४४