अनियत, विशेष और संयुक्त — इन पाँच
भावोंसे रहित होने सम्बन्धी कथन
। .........
शुद्धनयके विषयभूत आत्माको जानना सो
सम्यग्ज्ञान है, ऐसा कथन
। ...................
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप आत्मा ही साधुके
सेवन करने योग्य है, उसका दृष्टांतसहित
कथन
। ...................................
शुद्धनयके विषयभूत आत्माको जब तक न जाने
तब तक वे जीव अज्ञानी हैं
।.........
अप्रतिबुद्ध(अज्ञानी)को कैसे पहिचाना जा
सकता है ? ..............................
अज्ञानीको समझानेकी रीति
। ..............
अज्ञानीने जीव – देहको एक देखकर तीर्थङ्करकी
स्तुतिका प्रश्न किया, उसका उत्तर
। .
इस उत्तरमें जीव देहकी भिन्नताका दृश्य तथा
जितेन्द्रिय, जितमोह और क्षीणमोह
। ..
चारित्रमें जो प्रत्याख्यान कहनेमें आता है वह क्या
है ? ऐसे शिष्यके प्रश्नका उत्तर दिया है कि
प्रत्याख्यान ज्ञान ही है
। ................
अनुभूति द्वारा परभावके तथा ज्ञेयभावके
भेदज्ञानके प्रकार
।.......................
दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप परिणत हुए आत्माका
स्वरूप कह कर रंगभूमिका स्थल (३८
गाथाओंमें) पूर्ण
। ..............................
१. जीव-अजीव अधिकार
जीवका स्वरूप न जाननेसे अज्ञानीजन जीवकी
कल्पना अध्यवसानादि भावरूप अन्यथा
करते हैं, इस प्रकारका वर्णन
। .......
जीवका स्वरूप अन्यथा कल्पते हैं, उनके
निषेधकी गाथा
। .........................
अध्यवसानादिभाव पुद्गलमय हैं, जीव नहीं हैं,
ऐसा कथन
।...........................
अध्यवसानादिभावको व्यवहारनयसे जीव कहा
गया है; तथा उसका दृष्टांत
। ........
परमार्थरूप जीवका स्वरूप
। ...........
वर्णको आदि लेकर गुणस्थान पर्यन्त जितने भाव
हैं वे जीवके नहीं हैं, ऐसा छह गाथाओंमें
कथन
। .................................
ये वर्णादिक भाव जीवके हैं ऐसा व्यवहारनय
कहता है, निश्चयनय नहीं कहता, ऐसा
दृष्टांतपूर्वक कथन
। ...................
वर्णादिक भावोंका जीवके साथ तादात्म्य कोई
अज्ञानी माने, उसका निषेध
। ........
२. कर्ताकर्म अधिकार
अज्ञानी जीव क्रोधादिमें जब तक वर्तता है तब
तक कर्मका बंध करता है
। ........
आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होने पर बन्ध नहीं
होता
। ...................................
ज्ञानमात्रसे ही बन्धका निरोध कैसे होता है ?
आस्रवोंसे निवृत्त होनेका विधान
। ......
ज्ञान होनेका और आस्रवोंकी निवृत्तिका समकाल
कैसे है ? उसका कथन
। ...........
ज्ञानस्वरूप हुए आत्माका चिह्न
। .......
आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होने पर
आत्मा ज्ञानी होता है तब कर्तृकर्मभाव भी नहीं
होता
। ...................................
जीव-पुद्गलकर्मके परस्पर नमित्त-नैमित्तिक
भाव है तो भी कर्तृकर्मभाव नही कहा जा
सकता
। ................................
निश्चयनयसे आत्मा और कर्मके कर्तृकर्मभाव
और भोक्तृ भोग्यभाव नहीं हैं, अपने में ही
कर्तृकर्मभाव और भोक्तृ भोग्यभाव हैं
।
विषय
गाथा
विषय
गाथा
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