व्यवहारनय आत्मा और पुद्गलकर्मके कर्तृ-
कर्मभाव और भोक्तृ भोग्यभाव कहता है
।
आत्माको पुद्गलकर्मका कर्ता और भोक्ता माना
जाय तो महान दोष — स्वपरके अभिन्न-
पनेका प्रसंग — आता है; वह मिथ्यात्व होनेसे
जिनदेवको सम्मत नहीं है
। ........
मिथ्यात्वादि आस्रव जीव-अजीवके भेदसे
दो प्रकारके हैं, ऐसा कथन और
उसका हेतु
। .........................
आत्माके मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति — ये तीन
परिणाम अनादि हैं; उनका कर्तृपना और उनके
निमित्तसे पुद्गलका कर्मरूप होना
।
आत्मा मिथ्यात्वादिभावरूप न परिणमे तब कर्मका
कर्ता नहीं है
। .......................
अज्ञानसे कर्म कैसे होता है ऐसा शिष्यका प्रश्न
और उसका उत्तर
।..................
कर्मके कर्तापनका मूल अज्ञान ही है
।
......
ज्ञानके होने पर कर्तापन नहीं होता
।
......
व्यवहारी जीव पुद्गलकर्मका कर्ता आत्माको
कहते हैं, यह अज्ञान है
।..........
आत्मा पुद्गलकर्मका कर्ता निमित्त-नैमित्तिक-
भावसे भी नहीं है; आत्माके योग-उपयोग हैं
वे निमित्त-नैमित्तिकभावसे कर्ता हैं और योग-
उपयोगका आत्मा कर्ता है
। .............
ज्ञानी ज्ञानका ही कर्ता है
। ..................
अज्ञानी भी अपने अज्ञानभावका ही कर्ता है,
पुद्गलकर्मका कर्ता तो ज्ञानी या अज्ञानी कोई
नहीं है, क्योंकि परद्रव्योंके परस्पर कर्तृकर्म-
भाव नहीं हैं
। .............................
एक द्रव्य अन्य द्रव्यका कुछ भी कर सकता
नहीं
। .................................
जीव निमित्तभूत बनने पर कर्मका परिणाम होता
हुआ देखकर उपचारसे कहा जाता है कि यह
कर्म जीवने किया
। ..................
मिथ्यात्वादि सामान्य आस्रव और गुणस्थानरूप
उनके विशेष बंधके कर्ता हैं, निश्चयकर
इनका जीव कर्ताभोक्ता नहीं है
।...
जीव और आस्रवोंका भेद दिखलाया है; अभेद
कहनेमें दूषण दिया है
। .............
सांख्यमती, पुरुष और प्रकृतिको अपरिणामी
कहते हैं उसका निषेध कर पुरुष और
पुद्गलको परिणामी कहा है
। ......
ज्ञानसे ज्ञानभाव और अज्ञानसे अज्ञानभाव ही
उत्पन्न होता है
। ......................
अज्ञानी जीव द्रव्यकर्म बंधनेका निमित्तरूप
अज्ञानादि भावोंका हेतु होता है
।...
पुद्गलके परिणाम तो जीवसे जुदे हैं और जीवके
पुद्गलसे जुदे हैं
। ....................
कर्म जीवसे बद्धस्पृष्ट है या अबद्धस्पृष्ट ऐसे
शिष्यके प्रश्नका निश्चय-व्यवहार दोनों नयोंसे
उत्तर
। ..................................
जो नयोंके पक्षसे रहित है वह कर्तृकर्मभावसे
रहित समयसार — शुद्ध आत्मा
—
है ऐसा
कहकर अधिकार पूर्ण
। .............
३. पुण्य-पाप अधिकार
शुभाशुभ कर्मके स्वभावका वर्णन
।........
दोनों ही कर्म बन्धके कारण हैं
। ..........
इसलिये दोनों कर्मोंका निषेध
। .............
उसका दृष्टांत और आगमकी
साक्षी
। .................................
ज्ञान मोक्षका कारण है
। .....................
विषय
गाथा
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