[२६ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
व्रतादिक पालै तो भी ज्ञान बिना मोक्ष
५. संवर अधिकार
नहीं है
। .................................
१५२-१५३
संवरका मूल उपाय भेदविज्ञान है उसकी
पुण्यकर्मके पक्षपातीका दोष
। ...........
१५४
१८१-१८३
रीतिका तीन गाथाओंमें कथन
। ......
ज्ञानको ही परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण कहा
भेदविज्ञानसे ही शुद्ध आत्माकी प्राप्ति
है, और अन्यका निषेध किया है
।..
१५५-१५६
होती है, ऐसा कथन
।.................
१८४-१८५
कर्म मोक्षके कारणका घात करता है ऐसा दृष्टांत
शुद्ध आत्माकी प्राप्तिसे ही संवर होता
द्वारा कथन
। ............................
१५७-१५९
है, ऐसा कथन
। .......................
१८६
संवर होनेका प्रकार — तीन गाथाओंमें
। .
कर्म आप ही बन्धस्वरूप है
। ..........
१६०
१८७-१८९
संवर होनेके क्रमका कथन; अधिकार
कर्म बन्धके कारणरूप भावस्वरूप है अर्थात्
पूर्ण
।.....................................
मिथ्यात्व-अज्ञान-कषायरूप है ऐसा कथन,
और तीसरा अधिकार पूर्ण
और तीसरा अधिकार पूर्ण
१९०-१९२
। ..........
१६१-१६३
६. निर्जरा अधिकार
४. आस्रव अधिकार
द्रव्यनिर्जराका स्वरूप
। .......................
१९३
१९४
१९५
१९६
१९७
१९४
१९५
१९६
१९७
आस्रवके स्वरूपका वर्णन अर्थात् मिथ्यात्व,
भावनिर्जराका स्वरूप
। .......................
अविरति, कषाय और योग — ये जीव-
ज्ञानका सामर्थ्य
।..............................
अजीवके भेदसे दो प्रकारके हैं और वे
बन्धके कारण हैं, ऐसा कथन
बन्धके कारण हैं, ऐसा कथन
वैराग्यका सामर्थ्य
। ...........................
१६४-१६५
। .....
ज्ञान-वैराग्यके सामर्थ्यका दृष्टांतपूर्वक कथन
।
१६६
ज्ञानीके उन आस्रवोंका अभाव कहा है
। .
सम्यग्दृष्टि सामान्यरूपसे तथा विशेषरूपसे
जीवके राग-द्वेष-मोहरूप अज्ञानमय परिणाम
स्व-परको किस रीतिसे जानता है, उस
सम्बन्धी कथन
सम्बन्धी कथन
१६७
हैं, वे ही आस्रव हैं
। ....................
। ........................
१९८-१९९
रागादिकसे अमिश्रित ज्ञानमय भावकी
सम्यग्दृष्टि ज्ञान-वैराग्यसम्पन्न होता है
। ..
२००
१६८
१६९
१६९
उत्पत्ति
। ....................................
रागी जीव सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं होता
ज्ञानीके द्रव्य-आस्रवोंका अभाव
। ..........
है, उस सम्बन्धी कथन
। ..............
२०१-२०२
‘ज्ञानी निरास्रव किस तरह है’ ऐसे
अज्ञानी रागी प्राणी रागादिकको अपना पद
शिष्यके प्रश्नका उत्तर
। ..................
१७०
जानता है; उस पदको छोड़ अपने
एक वीतराग ज्ञायकभावपदमें स्थिर
होनेका उपदेश
एक वीतराग ज्ञायकभावपदमें स्थिर
होनेका उपदेश
अज्ञानी और ज्ञानीके आस्रवका होने और न
२०३
। ...........................
होनेका युक्तिपूर्वक वर्णन
।..........
१७१-१७६
आत्माका पद एक ज्ञायकस्वभाव है और वह ही
राग-द्वेष-मोह अज्ञानपरिणाम है, वही
मोक्षका कारण है; ज्ञानमें जो भेद हैं वे कर्मके
क्षयोपशमके निमित्तसे हैं
क्षयोपशमके निमित्तसे हैं
बंधके कारणरूप आस्रव है; वह ज्ञानीके
नहीं है; इसलिये ज्ञानीके कर्मबंध भी नहीं
है
नहीं है; इसलिये ज्ञानीके कर्मबंध भी नहीं
है
। ...............
२०४
।
अधिकार पूर्ण
। .................
१७७-१८०
ज्ञान ज्ञानसे ही प्राप्त होता है
। ..........
२०५-२०६