व्रतादिक पालै तो भी ज्ञान बिना मोक्ष
नहीं है
। .................................
पुण्यकर्मके पक्षपातीका दोष
। ...........
ज्ञानको ही परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण कहा
है, और अन्यका निषेध किया है
।..
कर्म मोक्षके कारणका घात करता है ऐसा दृष्टांत
द्वारा कथन
। ............................
कर्म आप ही बन्धस्वरूप है
। ..........
कर्म बन्धके कारणरूप भावस्वरूप है अर्थात्
मिथ्यात्व-अज्ञान-कषायरूप है ऐसा कथन,
और तीसरा अधिकार पूर्ण
। ..........
४. आस्रव अधिकार
आस्रवके स्वरूपका वर्णन अर्थात् मिथ्यात्व,
अविरति, कषाय और योग — ये जीव-
अजीवके भेदसे दो प्रकारके हैं और वे
बन्धके कारण हैं, ऐसा कथन
। .....
ज्ञानीके उन आस्रवोंका अभाव कहा है
। .
जीवके राग-द्वेष-मोहरूप अज्ञानमय परिणाम
हैं, वे ही आस्रव हैं
। ....................
रागादिकसे अमिश्रित ज्ञानमय भावकी
उत्पत्ति
। ....................................
ज्ञानीके द्रव्य-आस्रवोंका अभाव
। ..........
‘ज्ञानी निरास्रव किस तरह है’ ऐसे
शिष्यके प्रश्नका उत्तर
। ..................
अज्ञानी और ज्ञानीके आस्रवका होने और न
होनेका युक्तिपूर्वक वर्णन
।..........
राग-द्वेष-मोह अज्ञानपरिणाम है, वही
बंधके कारणरूप आस्रव है; वह ज्ञानीके
नहीं है; इसलिये ज्ञानीके कर्मबंध भी नहीं
है
।
अधिकार पूर्ण
। .................
५. संवर अधिकार
संवरका मूल उपाय भेदविज्ञान है उसकी
रीतिका तीन गाथाओंमें कथन
। ......
भेदविज्ञानसे ही शुद्ध आत्माकी प्राप्ति
होती है, ऐसा कथन
।.................
शुद्ध आत्माकी प्राप्तिसे ही संवर होता
है, ऐसा कथन
। .......................
संवर होनेका प्रकार — तीन गाथाओंमें
। .
संवर होनेके क्रमका कथन; अधिकार
पूर्ण
।.....................................
६. निर्जरा अधिकार
द्रव्यनिर्जराका स्वरूप
। .......................
भावनिर्जराका स्वरूप
। .......................
ज्ञानका सामर्थ्य
।..............................
वैराग्यका सामर्थ्य
। ...........................
ज्ञान-वैराग्यके सामर्थ्यका दृष्टांतपूर्वक कथन
।
सम्यग्दृष्टि सामान्यरूपसे तथा विशेषरूपसे
स्व-परको किस रीतिसे जानता है, उस
सम्बन्धी कथन
। ........................
सम्यग्दृष्टि ज्ञान-वैराग्यसम्पन्न होता है
। ..
रागी जीव सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं होता
है, उस सम्बन्धी कथन
। ..............
अज्ञानी रागी प्राणी रागादिकको अपना पद
जानता है; उस पदको छोड़ अपने
एक वीतराग ज्ञायकभावपदमें स्थिर
होनेका उपदेश
। ...........................
आत्माका पद एक ज्ञायकस्वभाव है और वह ही
मोक्षका कारण है; ज्ञानमें जो भेद हैं वे कर्मके
क्षयोपशमके निमित्तसे हैं
। ...............
ज्ञान ज्ञानसे ही प्राप्त होता है
। ..........
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विषय
गाथा
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