Samaysar (Hindi).

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ज्ञानी परको क्यों नहीं ग्रहण करता, ऐसे
शिष्यके प्रश्नका उत्तर
। ..................
परिग्रहके त्यागका विधान
।..................
ज्ञानीके सब परिग्रहका त्याग है
कर्मके फलकी वाँछासे कर्म करता है वह
कर्मसे लिप्त होता है; ज्ञानीके वाँछा नहीं
होनेसे वह कर्मसे लिप्त नहीं होता है,
उसका दृष्टांत द्वारा कथन
। ...........
सम्यक्त्वके आठ अंग हैं, उनमेंसे प्रथम
तो सम्यग्दृष्टि निःशंक तथा सात भय
रहित है, ऐसा कथन
। ................
निष्कांक्षिता, निर्विचिकित्सा, अमूढत्व, उपगूहन,
स्थतिकरण, वात्सल्य, प्रभावनाइनका
निश्चयनयकी प्रधानतासे वर्णन
।.......
७. बन्ध अधिकार
बन्धके कारणका कथन
। ................
ऐसे कारणरूप आत्मा न प्रवर्ते तो बन्ध न
हो, ऐसा कथन
।.......................
मिथ्यादृष्टिको जिससे बन्ध होता है, उस
आशयको प्रगट किया है और वह आशय
अज्ञान है, ऐसा सिद्ध किया है
। ....
अज्ञानमय अध्यवसाय ही बन्धका
कारण है
। ..............................
बाह्यवस्तु बन्धका कारण नहीं है, अध्यवसान
ही बंधका कारण हैऐसा कथन
अध्यवसान अपनी अर्थक्रिया नहीं करता
होनेसे मिथ्या है
। ......................
मिथ्यादृष्टि अज्ञानरूप अध्यवसायसे अपनी
आत्माको अनेक अवस्थारूप करता
है, ऐसा कथन
। .......................
यह अज्ञानरूप अध्यवसाय जिनके नहीं
है वे मुनि कर्मसे लिप्त नहीं होते
। .....
यह अध्यवसाय क्या है ? ऐसे शिष्यके
प्रश्नका उत्तर
।.............................
इस अध्यवसानका निषेध है वह
व्यवहारनयका ही निषेध है
। ............
जो केवल व्यवहारका ही अवलंबन करता है वह
अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि है; क्योंकि इसका
अवलंबन अभव्य भी करता है, व्रत, समिति,
गुप्ति पालता है, ग्यारह अंग पढ़ता है, तो भी
उसे मोक्ष नहीं है
। ........................
शास्त्रोंका ज्ञान होने पर भी अभव्य अज्ञानी है
अभव्य धर्मकी श्रद्धा करता है वह भागहेतु
धर्मकी ही है, मोक्षहेतु धर्मकी नहीं
। ..
व्यवहार-निश्चयनयका स्वरूप
। .........
रागादिक भावोंका निमित्त आत्मा है या परद्रव्य ?
उसका उत्तर
। ..........................
आत्मा रागादिकका अकारक ही किस रीतिसे है,
उसका उदाहरणपूर्वक कथन
।.......
८. मोक्ष अधिकार
मोक्षका स्वरूप कर्मबंधसे छूटना है; जो जीव
बंधका छेद नहीं करता है, परन्तु मात्र बंधके
स्वरूपको जानकर ही संतुष्ट है वह मोक्ष नहीं
पाता है
। ...............................
बन्धकी चिन्ता करने पर भी बन्ध नहीं कटता
है
। ..........................................
बन्ध-छेदनसे ही मोक्ष होता है
। .......
बन्धका छेद कैसे करना, ऐसे प्रश्नका उत्तर यह
है कि कर्मबन्धके छेदनेको प्रज्ञाशस्त्र ही
करण है
। ..................................
प्रज्ञारूप करणसे आत्मा और बन्धदोनोंको
जुदे जुदे कर प्रज्ञासे ही आत्माको ग्रहण
करना, बन्धको छोड़ना
। .............
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विषय
गाथा
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