Samaysar (Hindi).

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कर्म अशुभं कुशीलं शुभकर्म चापि जानीथ सुशीलम्
कथं तद्भवति सुशीलं यत्संसारं प्रवेशयति ।।१४५।।
शुभाशुभजीवपरिणामनिमित्तत्वे सति कारणभेदात्, शुभाशुभपुद्गलपरिणाममयत्वे सति
स्वभावभेदात्, शुभाशुभफलपाकत्वे सत्यनुभवभेदात्, शुभाशुभमोक्षबन्धमार्गाश्रितत्वे सत्याश्रय-
भेदात् चैकमपि कर्म किंचिच्छुभं किंचिदशुभमिति केषांचित्किल पक्षः
स तु सप्रतिपक्षः तथा
हिशुभोऽशुभो वा जीवपरिणामः केवलाज्ञानमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति कारणाभेदादेकं कर्म
शुभोऽशुभो वा पुद्गलपरिणामः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति स्वभावाभेदादेकं कर्म
शुभोऽशुभो वा फलपाकः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सत्यनुभावाभेदादेकं कर्म शुभाशुभौ
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पुण्य-पाप अधिकार
२३७
गाथार्थ :[अशुभं क र्म ] अशुभ क र्म [कु शीलं ] कुशील है (बुरा है) [अपि च ]
और [शुभक र्म ] शुभ क र्म [सुशीलम् ] सुशील है (अच्छा है) ऐसा [जानीथ ] तुम जानते हो!
[तत् ] (कि न्तु) वह [सुशीलं ] सुशील [क थं ] कैसे [भवति ] हो सकता है [यत् ] जो
[संसारं ] (जीवको) संसारमें [प्रवेशयति ] प्रवेश क राता है ?
टीका :किसी कर्ममें शुभ जीवपरिणाम निमित्त होनेसे किसीमें अशुभ जीवपरिणाम
निमित्त होनेसे कर्मके कारणोंमें भेद होता है; कोई कर्म शुभ पुद्गलपरिणाममय और कोई अशुभ
पुद्गलपरिणाममय होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद होता है; किसी कर्मका शुभ फलरूप और
किसीका अशुभ फलरूप विपाक होनेसे कर्मके अनुभवमें (
स्वादमें) भेद होता है; कोई कर्म
शुभ (अच्छे) ऐसे मोक्षमार्गके आश्रित होनेसे और कोई कर्म अशुभ (बुरे) ऐसे बन्धमार्गके
आश्रित होनेसे कर्मके आश्रयमें भेद होता है (इसलिये) यद्यपि (वास्तवमें) कर्म एक ही है
तथापि कई लोगोंका ऐसा पक्ष है कि कोई कर्म शुभ है और कोई अशुभ है परन्तु वह (पक्ष)
प्रतिपक्ष सहित है वह प्रतिपक्ष (अर्थात् व्यवहारपक्षका निषेध करनेवाला निश्चयपक्ष) इसप्रकार
है :
शुभ या अशुभ जीवपरिणाम केवल अज्ञानमय होनेसे एक है; और उसके एक होनेसे
कर्मके कारणमें भेद नहीं होता; इसिलये कर्म एक ही है शुभ या अशुभ पुद्गलपरिणाम केवल
पुद्गलमय होनेसे एक है; उसके एक होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद नहीं होता; इसिलये कर्म एक
ही है
शुभ या अशुभ फलरूप होनेवाला विपाक केवल पुद्गलमय होनेसे एक ही है; उसके
एक होनेसे कर्मके अनुभवमें (स्वादमें) भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है शुभ
(अच्छा) ऐसा मोक्षमार्ग तो केवल जीवमय है और अशुभ (बुरा) ऐसा बन्धमार्ग तो केवल
पुद्गलमय है, इसलिये वे अनेक (भिन्न भिन्न, दो) है; और उनके अनेक होने पर भी कर्म तो