Samaysar (Hindi). Gatha: 152.

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स्वतश्चितो भवनमात्रतया सद्भावो वेति शब्दभेदेऽपि न च वस्तुभेदः
अथ ज्ञानं विधापयति
परमट्ठम्हि दु अठिदो जो कुणदि तवं वदं च धारेदि
तं सव्वं बालतवं बालवदं बेंति सव्वण्हू ।।१५२।।
परमार्थे त्वस्थितः यः करोति तपो व्रतं च धारयति
तत्सर्वं बालतपो बालव्रतं ब्रुवन्ति सर्वज्ञाः ।।१५२।।
ज्ञानमेव मोक्षस्य कारणं विहितं, परमार्थभूतज्ञानशून्यस्याज्ञानकृतयोर्व्रततपःकर्मणोः
बन्धहेतुत्वाद्बालव्यपदेशेन प्रतिषिद्धत्वे सति तस्यैव मोक्षहेतुत्वात्
भवन = होना
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पुण्य-पाप अधिकार
२४५
होनेसे केवली है, केवल मननमात्र (ज्ञानमात्र) भावस्वरूप होनेसे मुनि है, स्वयं ही ज्ञानस्वरूप
होनेसे ज्ञानी है, ‘स्व’का भवनमात्रस्वरूप होनेसे स्वभाव है अथवा स्वतः चैतन्यका
भवनमात्रस्वरूप होनेसे सद्भाव है (क्योंकि जो स्वतः होता है वह सत्-स्वरूप ही होता है)
इसप्रकार शब्दभेद होने पर भी वस्तुभेद नहीं है (यद्यपि नाम भिन्न-भिन्न हैं तथापि वस्तु एक
ही है)
भावार्थ :मोक्षका उपादान तो आत्मा ही है और परमार्थसे आत्माका ज्ञानस्वभाव है;
जो ज्ञान है सो आत्मा है और आत्मा है सो ज्ञान है इसलिये ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहना
योग्य है ।।१५१।।
अब, यह बतलाते हैं कि आगममें भी ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है :
परमार्थमें नहिं तिष्ठकर, जो तप करें व्रतको धरें
तप सर्व उसका बाल अरु, व्रत बाल जिनवरने कहे ।।१५२।।
गाथार्थ :[परमार्थे तु ] परमार्थमें [अस्थितः ] अस्थित [यः ] जो जीव
[तपः क रोति ] तप क रता है [च ] और [व्रतं धारयति ] व्रत धारण क रता है, [तत्सर्वं ] उसके
उन सब तप और व्रतको [सर्वज्ञाः ] सर्वज्ञदेव [बालतपः ] बालतप और [बालव्रतं ] बालव्रत
[ब्रुवन्ति ] क हते हैं
टीका :आगममें भी ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है (ऐसा सिद्ध होता है); क्योंकि
जो जीव परमार्थभूत ज्ञानसे रहित है उसके, अज्ञानपूर्वक किये गये व्रत, तप आदि कर्म बन्धके