Samaysar (Hindi). Gatha: 151.

< Previous Page   Next Page >


Page 244 of 642
PDF/HTML Page 277 of 675

 

background image
अथ ज्ञानं मोक्षहेतुं साधयति
परमट्ठो खलु समओ सुद्धो जो केवली मुणी णाणी
तम्हि ट्ठिदा सहावे मुणिणो पावंति णिव्वाणं ।।१५१।।
परमार्थः खलु समयः शुद्धो यः केवली मुनिर्ज्ञानी
तस्मिन् स्थिताः स्वभावे मुनयः प्राप्नुवन्ति निर्वाणम् ।।१५१।।
ज्ञानं हि मोक्षहेतुः, ज्ञानस्य शुभाशुभकर्मणोरबन्धहेतुत्वे सति मोक्षहेतुत्वस्य तथोपपत्तेः
तत्तु सकलकर्मादिजात्यन्तरविविक्तचिज्जातिमात्रः परमार्थ आत्मेति यावत् स तु युगपदेकीभाव-
प्रवृत्तज्ञानगमनमयतया समयः, सकलनयपक्षासंकीर्णैकज्ञानतया शुद्धः, केवलचिन्मात्रवस्तुतया
केवली, मननमात्रभावतया मुनिः, स्वयमेव ज्ञानतया ज्ञानी, स्वस्य भवनमात्रतया स्वभावः
२४४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
आश्रयसे या किस आलम्बनके द्वारा मुनित्वका पालन कर सकेंगे ? आचार्यदेवने उसके समाधानार्थ
कहा है कि :
समस्त कर्मका त्याग हो जाने पर ज्ञानका महा शरण है उस ज्ञानमें लीन होने
पर सर्व आकुलतासे रहित परमानन्दका भोग होता हैजिसके स्वादको ज्ञानी ही जानता है
अज्ञानी कषायी जीव कर्मको ही सर्वस्व जानकर उसमें लीन हो रहा है, ज्ञानानन्दके स्वादको नहीं
जानता
।१०४।
अब यह सिद्ध करते हैं कि ज्ञान मोक्षका कारण है :
परमार्थ है निश्चय, समय, शुध, केवली, मुनि ज्ञानि है
तिष्ठे जु उसहि स्वभाव मुनिवर, मोक्षकी प्राप्ती करै ।।१५१।।
गाथार्थ :[खलु ] निश्चयसे [यः ] जो [परमार्थः ] परमार्थ (परम पदार्थ) है,
[समयः ] समय है, [शुद्धः ] शुद्ध है, [केवली ] के वली है, [मुनिः ] मुनि है, [ज्ञानी ] ज्ञानी
है, [तस्मिन् स्वभावे ] उस स्वभावमें [स्थिताः ] स्थित [मुनयः ] मुनि [निर्वाणं ] निर्वाणको
[प्राप्नुवन्ति ] प्राप्त होते हैं
टीका :ज्ञान मोक्षका कारण है, क्योंकि वह शुभाशुभ कर्मोंके बन्धका कारण नहीं
होनेसे उसके इसप्रकार मोक्षका कारणपना बनता है वह ज्ञान, समस्त कर्म आदि अन्य जातियोंसे
भिन्न चैतन्य-जातिमात्र परमार्थ (परम पदार्थ) हैआत्मा है वह (आत्मा) एक ही साथ
(युगपद्) एक ही रूपसे (एकत्वपूर्वक) प्रवर्तमान ज्ञान और गमन (परिणमन) स्वरूप होनेसे
समय है, समस्त नयपक्षोंसे अमिश्रित एक ज्ञानस्वरूप होनेसे शुद्ध है, केवल चिन्मात्र वस्तुस्वरूप