Samaysar (Hindi). Kalash: 103-104.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
पुण्य-पाप अधिकार
२४३

(स्वागता) कर्म सर्वमपि सर्वविदो यद् बन्धसाधनमुशन्त्यविशेषात् तेन सर्वमपि तत्प्रतिषिद्धं ज्ञानमेव विहितं शिवहेतुः ।।१०३।।

(शिखरिणी)
निषिद्धे सर्वस्मिन् सुकृतदुरिते कर्मणि किल
प्रवृत्ते नैष्कर्म्ये न खलु मुनयः सन्त्यशरणाः
तदा ज्ञाने ज्ञानं प्रतिचरितमेषां हि शरणं
स्वयं विन्दन्त्येते परमममृतं तत्र निरताः
।।१०४।।
निषेध करता है ।।१५०।।
इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :

श्लोकार्थ :[यद् ] क्योंकि [सर्वविदः ] सर्वज्ञदेव [सर्वम् अपि क र्म ] समस्त (शुभाशुभ) क र्मको [अविशेषात् ] अविशेषतया [बन्धसाधनम् ] बंधका साधन (कारण) [उशन्ति ] क हते हैं, [तेन ] इसलिये (यह सिद्ध हुआ कि उन्होंने) [सर्वम् अपि तत् प्रतिषिद्धं ] समस्त क र्मका निषेध किया है और [ज्ञानम् एव शिवहेतुः विहितं ] ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है ।१०३।

जब कि समस्त कर्मोंका निषेध कर दिया गया है तब फि र मुनियोंको किसकी शरण रही सो अब कहते हैं :

श्लोकार्थ :[सुकृतदुरिते सर्वस्मिन् क र्मणि कि ल निषिद्धे ] शुभ आचरणरूप क र्म और अशुभ आचरणरूप क र्मऐसे समस्त क र्मका निषेध क र देने पर और [नैष्क र्म्ये प्रवृत्ते ] इसप्रकार निष्क र्म (निवृत्ति) अवस्था प्रवर्तमान होने पर [मुनयः खलु अशरणाः न सन्ति ] मुनिजन क हीं अशरण नहीं हैं; [तदा ] (क्योंकि) जब निष्क र्म अवस्था प्रवर्तमान होती है तब [ज्ञाने प्रतिचरितम् ज्ञानं हि ] ज्ञानमें आचरण क रता हुआरमण क रता हुआपरिणमन करता हुआ ज्ञान ही [एषां ] उन मुनियोंको [शरणं ] शरण है; [एते ] वे [तत्र निरताः ] उस ज्ञानमें लीन होते हुए [परमम् अमृतं ] परम अमृतका [स्वयं ] स्वयं [विन्दन्ति ] अनुभव करते हैंस्वाद लेते हैं

भावार्थ :किसीको यह शंका हो सकती है किजब सुकृत और दुष्कृतदोनोंका निषेध कर दिया गया है तब फि र मुनियोंको कुछ भी करना शेष नहीं रहता, इसलिये वे किसके