गाथार्थ : — [मिथ्यात्वम् ] मिथ्यात्व, [अविरमणं ] अविरमण, [क षाययोगौ च ] क षाय और योग — यह आस्रव [संज्ञासंज्ञाः तु ] संज्ञ (चेतनके विकार) भी है और असंज्ञ (पुद्गलके विकार) भी हैं । [बहुविधभेदाः ] विविध भेदवाले संज्ञ आस्रव — [जीवे ] जो कि जीवमें उत्पन्न होते हैं वेे — [तस्य एव ] जीवके ही [अनन्यपरिणामाः ] अनन्य परिणाम हैं । [ते तु ] और असंज्ञ आस्रव [ज्ञानावरणाद्यस्य क र्मणः ] ज्ञानावरणादि क र्मके [कारणं ] कारण (निमित्त) [भवन्ति ] होते हैं [च ] और [तेषाम् अपि ] उनका भी (असंज्ञ आस्रवोंके भी क र्मबंधका निमित्त होनेमें) [रागद्वेषादिभावक रः जीवः ] रागद्वेषादि भाव क रनेवाला जीव [भवति ] कारण (निमित्त) होता है ।
टीका : — इस जीवमें राग, द्वेष और मोह — यह आस्रव अपने परिणामके निमित्तसे (कारणसे) होते हैं, इसलिये वे जड़ न होनेसे चिदाभास हैं ( – अर्थात् जिसमें चैतन्यका आभास है ऐसे हैं, चिद्विकार हैं) ।