कायासे अतीत, वर्तमान और अनागत
कर्मके त्यागका उनचास उनचास भङ्ग द्वारा
कथन करके कर्मचेतनाके त्यागका विधान
दिखाया है तथा एक सौ अड़तालीस
प्रकृतियोंके फलके त्यागका कथन करके
कर्मफलचेतनाके त्यागका विधान दिखाया
है
। .................................
ज्ञानको समस्त अन्य द्रव्योंसे भिन्न
बतलाया हैं
। ......................
आत्मा अमूर्तिक है, इसलिये इसके
पुद्गलमयी देह नहीं है
।........
द्रव्यलिंग देहमयी है, इसलिये द्रव्यलिंग
आत्माके मोक्षका कारण नहीं है;
दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग है, ऐसा
कथन
। ............................
मोक्षका अर्थी दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप
मोक्षमार्गमें ही आत्माको प्रवर्तावे, ऐसा
उपदेश किया है
। ................
जो द्रव्यलिंगमें ममत्व करते हैं वे समयसारको
नहीं जानते हैं
। ...................
व्यवहारनय ही मुनि-श्रावकके लिंगको
मोक्षमार्ग कहता है, और निश्चयनय किसी
लिंगको मोक्षमार्ग नहीं कहता — ऐसा
कथन
। ............................
इस शास्त्रको पूर्ण करते हुए, उसके अभ्यास
आदिका फल कहते हैं
। .......
[परिशिष्ट पृष्ठ ५९२ से ६२९]
इस शास्त्रको अनन्त धर्मवाले आत्माको
ज्ञानमात्र कहनेमें स्याद्वादसे विरोध कैसे नहीं
आता है ? इसको बताते हुए, तथा एक ही
ज्ञानमें उपायभाव और उपेयभाव दोनों किस
तरह बनते हैं ? यह बताते हुए टीकाकार
आचार्यदेव इस ‘आत्मख्याति’ टीकाके
अन्तमें परिशिष्टरूपसे स्याद्वाद और उपाय-
उपेय-भावके विषयमें थोड़ा कहनेकी
प्रतिज्ञा करते हैं
। .................
एक ज्ञानमें ही ‘‘तत्, अतत्, एक,
अनेक, सत्, असत्, नित्य, अनित्य’’
इन भावोंके चौदह भेद कर उनके १४
काव्य कहे हैं
। ..................
ज्ञान लक्षण है और आत्मा लक्ष्य है, ज्ञानकी
प्रसिद्धिसे ही आत्माकी प्रसिद्धि होती है,
इसलिये आत्माको ज्ञानमात्र कहा है
।
एक ज्ञानक्रियारूप परिणत आत्मामें ही अनन्त
शक्तियाँ प्रगट हैं, उनमेंसे सैंतालीस
शक्तियोंके नाम तथा लक्षणोंका कथन
।
उपाय-उपेयभावका वर्णन; उसमें, आत्मा
परिणामी होनेसे साधकपना और सिद्धपना –
ये दोनों भाव अच्छी तरह बनते हैं,
ऐसा कथन
।......................
थोड़े कलशोंमें, अनेक विचित्रतासे भरे
हुए आत्माकी महिमा करके परिशिष्ट
सम्पूर्ण
। ...........................
टीकाकार आचार्यदेवका वक्तव्य,
आत्मख्याति टीका सम्पूर्ण
। ....
पं० श्री जयचन्दजी छाबड़ाका वक्तव्य,
ग्रन्थ समाप्त
। .....................
विषय
गाथा
३८७-३८९
३९०-४०४
४०५-४०७
४०८-४१०
४११-४१२
४१३
४१४
४१५
विषय
गाथा
५८९
५९०
६०६
६०९
६१४
६१८
६२८
६२९
L
[२९ ]