Samaysar (Hindi). Kalash: 152.

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(शार्दूलविक्रीडित)
कर्तारं स्वफलेन यत्किल बलात्कर्मैव नो योजयेत्
कुर्वाणः फललिप्सुरेव हि फलं प्राप्नोति यत्कर्मणः
ज्ञानं संस्तदपास्तरागरचनो नो बध्यते कर्मणा
कुर्वाणोऽपि हि कर्म तत्फलपरित्यागैकशीलो मुनिः
।।१५२।।
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
ते कामचारः अस्ति ] तो क्या तुझे भोगनेकी इच्छा है ? [ज्ञानं सन् वस ] तू ज्ञानरूप होकर
(
शुद्ध स्वरूपमें) निवास क र, [अपरथा ] अन्यथा (अर्थात् यदि भोगनेकी इच्छा क रेगा
अज्ञानरूप परिणमित होगा तो) [ध्रुवम् स्वस्य अपराधात् बन्धम् एषि ] तू निश्चयतः अपने अपराधसे
बन्धको प्राप्त होगा
भावार्थ :ज्ञानीको कर्म तो करना ही उचित नहीं है यदि परद्रव्य जानकर भी उसे भोगे
तो यह योग्य नहीं है परद्रव्यके भोक्ताको तो जगतमें चोर कहा जाता है, अन्यायी कहा जाता
है और जो उपभोगसे बन्ध नहीं कहा सो तो, ज्ञानी इच्छाके बिना ही परकी जबरदस्तीसे उदयमें
आये हुएको भोगता है वहाँ उसे बन्ध नहीं कहा यदि वह स्वयं इच्छासे भोगे तब तो स्वयं
अपराधी हुआ और तब उसे बन्ध क्यों न हो ? ।१५१।
अब आगेकी गाथाका सूचक काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[यत् किल कर्म एव कर्तारं स्वफलेन बलात् नो योजयेत् ] क र्म ही उसके
क र्ताको अपने फलके साथ बलात् नहीं जोड़ता (कि तू मेरे फलको भोग), [फललिप्सुः एव
हि कुर्वाणः कर्मणः यत् फलं प्राप्नोति ]
फलकी इच्छावाला ही क र्मको क रता हुआ क र्मके
फलको पाता है; [ज्ञानं सन् ] इसलिए ज्ञानरूप रहता हुआ और [तद्-अपास्त-रागरचनः ] जिसने
क र्मके प्रति रागकी रचना दूर की है ऐसा [मुनिः ] मुनि, [तत्-फल-परित्याग-एक-शीलः ]
क र्मफलके परित्यागरूप ही एक स्वभाववाला होनेसे, [कर्म कुर्वाणः अपि हि ] क र्म क रता हुआ
भी [कर्मणा नो बध्यते ] क र्मसे नहीं बन्धता
भावार्थ :कर्म तो कर्ताको बलात् अपने फलके साथ नहीं जोड़ता, किन्तु जो कर्मको
करता हुआ उसके फलकी इच्छा करता है वही उसका फल पाता है इसलिये जो ज्ञानरूप वर्तता
है और बिना ही रागके कर्म करता है वह मुनि कर्मसे नहीं बँधता, क्योंकि उसे कर्मफलकी इच्छा
नहीं है
।१५२।
कर्मका फल अर्थात् (१) रंजित परिणाम, अथवा (२) सुख (रंजित परिणाम) को उत्पन्न करनेवाला
आगामी भोग