४१२
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
एवं णाणी सुद्धो ण सयं परिणमदि रागमादीहिं ।
राइज्जदि अण्णेहिं दु सो रागादीहिं दोसेहिं ।।२७९।।
यथा स्फ टिकमणिः शुद्धो न स्वयं परिणमते रागाद्यैः ।
रज्यतेऽन्यैस्तु स रक्तादिभिर्द्रव्यैः ।।२७८।।
एवं ज्ञानी शुद्धो न स्वयं परिणमते रागाद्यैः ।
रज्यतेऽन्यैस्तु स रागादिभिर्दोषैः ।।२७९।।
यथा खलु केवलः स्फ टिकोपलः, परिणामस्वभावत्वे सत्यपि, स्वस्य शुद्धस्वभावत्वेन
रागादिनिमित्तत्वाभावात् रागादिभिः स्वयं न परिणमते, परद्रव्येणैव स्वयं रागादिभावापन्नतया
स्वस्य रागादिनिमित्तभूतेन, शुद्धस्वभावात्प्रच्यवमान एव, रागादिभिः परिणम्यते; तथा केवलः
किलात्मा, परिणामस्वभावत्वे सत्यपि, स्वस्य शुद्धस्वभावत्वेन रागादिनिमित्तत्वाभावात् रागादिभिः
त्यों ‘ज्ञानी’ भी है शुद्ध, आप न रागरूप जु परिणमे ।
पर अन्य जो रागादि दूषण, उनसे वह रागी बने ।।२७९।।
गाथार्थ : — [यथा ] जैसे [स्फ टिकमणिः ] स्फ टिक मणि [शुद्धः ] शुद्ध होनेसे
[रागाद्यैः ] रागादिरूपसे (ललाई-आदिरूपसे) [स्वयं ] अपने आप [न परिणमते ] परिणमता
नहीं है, [तु ] परंतु [अन्यैः रक्तादिभिः द्रव्यैः ] अन्य रक्तादि द्रव्योंसे [सः ] वह [रज्यते ] रक्त
( – लाल) आदि किया जाता है, [एवं ] इसीप्रकार [ज्ञानी ] ज्ञानी अर्थात् आत्मा [शुद्धः ] शुद्ध
होनेसे [रागाद्यैः ] रागादिरूप [स्वयं ] अपने आप [न परिणमते ] परिणमता नहीं है, [तु ] परंतु
[अन्यैः रागादिभिः दोषैः ] अन्य रागादि दोषोंसे [सः ] वह [रज्यते ] रागी आदि किया
जाता है ।
टीका : — जैसे वास्तवमें केवल ( – अकेला) स्फ टिकमणि, स्वयं परिणमनस्वभाववाला
होने पर भी, अपनेको शुद्धस्वभावत्वके कारण रागादिका निमित्तत्व न होनेसे (स्वयं अपनेको
ललाई-आदिरूप परिणमनका निमित्त न होनेसे) अपने आप रागादिरूप नहीं परिणमता, किन्तु
जो अपने आप रागादिभावको प्राप्त होनेसे स्फ टिकमणिको रागादिका निमित्त होता है ऐसे परद्रव्यके
द्वारा ही, शुद्धस्वभावसे च्युत होता हुआ ही, रागादिरूप परिणमित किया जाता है; इसीप्रकार
वास्तवमें केवल ( – अकेला) आत्मा, स्वयं परिणमन-स्वभाववाला होने पर भी, अपनेको