Samaysar (Hindi). Gatha: 280 Kalash: 176.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(अनुष्टुभ्)
इति वस्तुस्वभावं स्वं ज्ञानी जानाति तेन सः
रागादीन्नात्मनः कुर्यान्नातो भवति कारकः ।।१७६।।
ण य रागदोसमोहं कुव्वदि णाणी कसायभावं वा
सयमप्पणो ण सो तेण कारगो तेसिं भावाणं ।।२८०।।
न च रागद्वेषमोहं करोति ज्ञानी कषायभावं वा
स्वयमात्मनो न स तेन कारकस्तेषां भावानाम् ।।२८०।।
यथोक्तं वस्तुस्वभावं जानन् ज्ञानी शुद्धस्वभावादेव न प्रच्यवते, ततो रागद्वेषमोहादि-
भावैः स्वयं न परिणमते, न परेणापि परिणम्यते, ततष्टंकोत्कीर्णैकज्ञायकभावो ज्ञानी
रागद्वेषमोहादिभावानामकर्तैवेति प्रतिनियमः
श्लोकार्थ :[इति स्वं वस्तुस्वभावं ज्ञानी जानाति ] ज्ञानी ऐसे अपने वस्तुस्वभावको
जानता है, [तेन सः रागादीन् आत्मनः न कुर्यात् ] इसलिये वह रागादिको निजरूप नहीं करता,
[अतः कारकः न भवति ] अतः वह (रागादिका) क र्ता नहीं है
।१७६।
अब, इसीप्रकार गाथा द्वारा कहते हैं :
कभि रागद्वेषविमोह अगर कषायभाव जु निजविषैं
ज्ञानी स्वयं करता नहीं, इससे न तत्कारक बने ।।२८०।।
गाथार्थ :[ज्ञानी ] ज्ञानी [रागद्वेषमोहं ] राग-द्वेष-मोहको [वा कषायभावं ] अथवा
क षायभावको [स्वयम् ] अपने आप [आत्मनः ] अपनेमें [न च करोति ] नहीं करता, [तेन ]
इसलिये [सः ] वह, [तेषां भावानाम् ] उन भावोंका [कारकः न ] कारक अर्थात् क र्ता नहीं है
टीका :यथोक्त (अर्थात् जैसा कहा वैसे) वस्तुस्वभावको जानता हुआ ज्ञानी (अपने)
शुद्धस्वभावसे ही च्युत नहीं होता, इसलिये वह राग-द्वेष-मोह आदि भावोंरूप स्वतः परिणमित नहीं
होता और दूसरेके द्वारा भी परिणमित नहीं किया जाता, इसलिये टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावस्वरूप
ज्ञानी राग-द्वेष-मोह आदि भावोंका अकर्ता ही है
ऐसा नियम है
भावार्थ :आत्मा जब ज्ञानी हुआ तब उसने वस्तुका ऐसा स्वभाव जाना कि
‘आत्मा स्वयं तो शुद्ध ही हैद्रव्यदृष्टिसे अपरिणमनस्वरूप है, पर्यायदृष्टिसे परद्रव्यके
निमित्तसे रागादिरूप परिणमित होता है’; इसलिये अब ज्ञानी स्वयं उन भावोंका कर्ता नहीं