Samaysar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
बन्ध अधिकार
४२३
इति बन्धो निष्क्रान्तः
इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ बन्धप्ररूपकः सप्तमोऽङ्कः ।।
टीका :इसप्रकार बन्ध (रंगभूमिसे) बाहर निकल गया
भावार्थ :रंगभूमिमें बन्धके स्वाँगने प्रवेश किया था जब ज्ञानज्योति प्रगट हुई तब वह
बन्ध स्वाँगको अलग करके बाहर निकल गया
(सवैया तेईसा)
जो नर कोय परै रजमाहिं सचिक्कण अंग लगै वह गाढै,
त्यों मतिहीन जु रागविरोध लिये विचरे तब बन्धन बाढै;
पाय समै उपदेश यथारथ रागविरोध तजै निज चाटै,
नाहिं बँधै तब कर्मसमूह जु आप गहै परभावनि काटै
इसप्रकार श्री समयसारकी (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार
परमागमकी) श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक टीकामें बन्धका प्ररूपक ७वाँ
अंक समाप्त हुआ