Samaysar (Hindi). Gatha: 298-299.

< Previous Page   Next Page >


Page 437 of 642
PDF/HTML Page 470 of 675

 

background image
कहानजैनशास्त्रमाला ]
मोक्ष अधिकार
४३७
पण्णाए घित्तव्वो जो दट्ठा सो अहं तु णिच्छयदो
अवसेसा जे भावा ते मज्झ परे त्ति णादव्वा ।।२९८।।
पण्णाए घित्तव्वो जो णादा सो अहं तु णिच्छयदो
अवसेसा जे भावा ते मज्झ परे त्ति णादव्वा ।।२९९।।
प्रज्ञया गृहीतव्यो यो द्रष्टा सोऽहं तु निश्चयतः
अवशेषा ये भावाः ते मम परा इति ज्ञातव्याः ।।२९८।।
प्रज्ञया गृहीतव्यो यो ज्ञाता सोऽहं तु निश्चयतः
अवशेषा ये भावाः ते मम परा इति ज्ञातव्याः ।।२९९।।
चेतनाया दर्शनज्ञानविकल्पानतिक्रमणाच्चेतयितृत्वमिव द्रष्टृत्वं ज्ञातृत्वं चात्मनः
स्वलक्षणमेव ततोऽहं द्रष्टारमात्मानं गृह्णामि यत्किल गृह्णामि तत्पश्याम्येव; पश्यन्नेव पश्यामि,
कर ग्रहण प्रज्ञासे नियत, द्रष्टा है सो ही मैं ही हूँ
अवशेष जो सब भाव हैं, मेरेसे पर हैंजानना ।।२९८।।
कर ग्रहण प्रज्ञासे नियत, ज्ञाता है सो ही मैं हि हूँ
अवशेष जो सब भाव हैं, मेरेसे पर हैंजानना ।।२९९।।
गाथार्थ :[प्रज्ञया ] प्रज्ञाके द्वारा [गृहीतव्यः ] इसप्रकार ग्रहण करना चाहिए कि
[यः द्रष्टा ] जो देखनेवाला है [सः तु ] वह [निश्चयतः ] निश्चयसे [अहम् ] मैं हूँ, [अवशेषाः ]
शेष [ये भावाः ] जो भाव हैं [ते ] वे [मम पराः ] मुझसे पर हैं, [इति ज्ञातव्याः ] ऐसा जानना
चाहिए
[प्रज्ञया ] प्रज्ञाके द्वारा [गृहीतव्यः ] इसप्रकार ग्रहण करना चाहिए कि[यः ज्ञाता ] जो
जाननेवाला है [सः तु ] वह [निश्चयतः ] निश्चयसे [अहम् ] मैं हूँ, [अवशेषाः ] शेष [ये भावाः ]
जो भाव हैं [ते ] वे [मम पराः ] मुझसे पर हैं, [इति ज्ञातव्याः ] ऐसा जानना चाहिए
टीका :चेतना दर्शनज्ञानरूप भेदोंका उल्लंघन नहीं करती है इसलिये, चेतकत्वकी
भाँति दर्शकत्व और ज्ञातृत्व आत्माका स्वलक्षण ही है इसलिये मैं देखनेवाले आत्माको ग्रहण
करता हूँ ‘ग्रहण करता हूँ’ अर्थात् ‘देखता ही हूँ’; देखता हुआ ही देखता हूँ, देखते हुएके द्वारा