कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि ।
तह पासगो दु ण परस्स पासगो पासगो सो दु ।।३५७।।
जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सडिया य सा होदि ।
तह संजदो दु ण परस्स संजदो संजदो सो दु ।।३५८।।
जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि ।
तह दंसणं दु ण परस्स दंसणं दंसणं त तु ।।३५९।।
एवं तु णिच्छयणयस्स भासिदं णाणदंसणचरित्ते ।
सुणु ववहारणयस्स य वत्तव्वं से समासेण ।।३६०।।
जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण ।
तह परदव्वं जाणदि णादा वि सएण भावेण ।।३६१।।
जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण ।
तह परदव्वं पस्सदि जीवो वि सएण भावेण ।।३६२।।
ज्यों सेटिका नहिं अन्यकी, है सेटिका बस सेटिका ।
दर्शक नहीं त्यों अन्यका, दर्शक अहो दर्शक तथा ।।३५७।।
ज्यों सेटिका नहिं अन्यकी, है सेटिका बस सेटिका ।
संयत नहीं त्यों अन्यका, संयत अहो संयत तथा ।।३५८।।
ज्यों सेटिका नहिं अन्यकी, है सेटिका बस सेटिका ।
दर्शन नहीं त्यों अन्यका, दर्शन अहो दर्शन तथा ।।३५९।।
यों ज्ञान-दर्शन-चरितविषयक कथन नय परमार्थका ।
सुन लो वचन संक्षेपसे, इस विषयमें व्यवहारका ।।३६०।।
ज्यों श्वेत करती सेटिका, परद्रव्य आप स्वभावसे ।
ज्ञाता भी त्यों ही जानता, परद्रव्यको निज भावसे ।।३६१।।
ज्यों श्वेत करती सेटिका, परद्रव्य आप स्वभावसे ।
आत्मा भी त्यों ही देखता, परद्रव्यको निज भावसे ।।३६२।।