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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
एवं व्यवहारस्य तु विनिश्चयो ज्ञानदर्शनचरित्रे ।
भणितोऽन्येष्वपि पर्यायेषु एवमेव ज्ञातव्यः ।।३६५।।
सेटिकात्र तावच्छवेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम् । तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुङ्यादि
परद्रव्यम् । अथात्र कुडयादेः परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं
भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धो मीमांस्यते — यदि सेटिका कुडयादेर्भवति
तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसम्बन्धे
जीवति सेटिका कुडयादेर्भवन्ती कुडयादिरेव भवेत्; एवं सति सेटिकायाः
स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यान्तरसंक्र मस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्द्रव्यस्यास्त्युच्छेदः । ततो
न भवति सेटिका कुडयादेः । यदि न भवति सेटिका कुडयादेस्तर्हि कस्य सेटिका
भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति । ननु कतराऽन्या सेटिका सेटिकायाः
[पश्यति ] देखता है । [यथा ] जैसे [सेटिका ] कलई [आत्मनः स्वभावेन ] अपने स्वभावसे
[परद्रव्यं ] परद्रव्यको [सेटयति ] सफे द क रती है, [तथा ] उसीप्रकार [ज्ञाता अपि ] ज्ञाता भी
[स्वकेन भावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] परद्रव्यको [विजहाति ] त्यागता है । [यथा ] जैसे
[सेटिका ] कलई [आत्मनः स्वभावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] परद्रव्यको [सेटयति ] सफे द
क रती है, [तथा ] उसीप्रकार [सम्यग्दृष्टिः ] सम्यग्दृष्टि [स्वभावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ]
परद्रव्यको [श्रद्धत्ते ] श्रद्धान करता है । [एवं तु ] इसप्रकार [ज्ञानदर्शनचरित्रे ] ज्ञान-दर्शन-चारित्रमें
[व्यवहारनयस्य विनिश्चयः ] व्यवहारनयका निर्णय [भणितः ] क हा है; [अन्येषु पर्यायेषु अपि ]
अन्य पर्यायोंमें भी [एवम् एव ज्ञातव्यः ] इसीप्रकार जानना चाहिए ।
टीका : — इस जगतमें कलई है, वह श्वेतगुणसे परिपूर्ण स्वभाववाला द्रव्य है । दीवार-
आदि परद्रव्य व्यवहारसे उस कलईका श्वैत्य है (अर्थात् कलईके द्वारा श्वेत किये जाने योग्य पदार्थ
है) । अब, ‘श्वेत करनेवाली कलई, श्वेत की जाने योग्य जो दीवार-आदि परद्रव्य उसकी है या
नहीं ?’ — इसप्रकार उन दोनोंके तात्त्विक (पारमार्थिक) सम्बन्धका यहाँ विचार किया जाता
है : — यदि कलई दीवार-आदि परद्रव्यकी हो तो क्या हो वह प्रथम विचार करते हैं : — ‘जिसका
जो होता है वह वही होता है, जैसे आत्माका ज्ञान होनेसे ज्ञान वह आत्मा ही है ( – पृथक् द्रव्य
नहीं);’ — ऐसा तात्त्विक सम्बन्ध जीवित (अर्थात् विद्यमान) होनेसे, कलई यदि दीवार-आदिकी
हो तो कलई वह दीवार-आदि ही होगी (अर्थात् कलई दीवार-आदिरूप ही होना चाहिए, दीवार-
आदिसे पृथक् द्रव्य नहीं होना चाहिए); ऐसा होने पर, कलईके स्वद्रव्यका उच्छेद (नाश) हो