Samaysar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
५०५
यथा सेटिका तु न परस्य सेटिका सेटिका च सा भवति
तथा दर्शनं तु न परस्य दर्शनं दर्शनं तत्तु ।।३५९।।
एवं तु निश्चयनयस्य भाषितं ज्ञानदर्शनचरित्रे
शृणु व्यवहारनयस्य च वक्तव्यं तस्य समासेन ।।३६०।।
यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन
तथा परद्रव्यं जानाति ज्ञातापि स्वकेन भावेन ।।३६१।।
यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन
तथा परद्रव्यं पश्यति जीवोऽपि स्वकेन भावेन ।।३६२।।
यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन
तथा परद्रव्यं विजहाति ज्ञातापि स्वकेन भावेन ।।३६३।।
यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन
तथा परद्रव्यं श्रद्धत्ते सम्यग्द्रष्टिः स्वभावेन ।।३६४।।
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[दर्शकः तु ] दर्शक (देखनेवाला, आत्मा) [परस्य न ] परका नहीं है, [दर्शकः ] दर्शक [सः
तु दर्शकः ]
वह तो दर्शक ही है
[यथा ] जैसे [सेटिका तु ] कलई [परस्य न ] परकी
(दीवाल आदिकी) नहीं है, [सेटिका ] कलई [सा च सेटिका भवति ] वह तो कलई ही है,
[तथा ] उसीप्रकार [संयतः तु ] संयत (त्याग क रनेवाला, आत्मा) [परस्य न ] परका
(
परद्रव्यका) नहीं है, [संयतः ] संयत [सः तु संयतः ] यह तो संयत ही है [यथा ] जैसे
[सेटिका तु ] कलई [परस्य न ] परकी नहीं है, [सेटिका ] कलई [सा च सेटिका भवति ]
यह तो कलई ही है, [तथा ] उसीप्रकार [दर्शनं तु ] दर्शन अर्थात् श्रद्धान [परस्य न ] परका नहीं
है, [दर्शनं तत् तु दर्शनम् ] दर्शन वह तो दर्शन ही है अर्थात् श्रद्धान वह तो श्रद्धान ही है
[एवं तु ] इसप्रकार [ज्ञानदर्शनचरित्रे ] ज्ञान-दर्शन-चारित्रमें [निश्चयनयस्य भाषितम् ]
निश्चयनयका क थन है [तस्य च ] और उस सम्बन्धमें [समासेन ] संक्षेपसे [व्यवहारनयस्य
वक्तव्यं ] व्यवहारनयका क थन [शृणु ] सुनो
[यथा ] जैसे [सेटिका ] कलई [आत्मनः स्वभावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] (दीवाल
आदि) परद्रव्यको [सेटयति ] सफे द क रती है, [तथा ] उसीप्रकार [ज्ञाता अपि ] ज्ञाता भी [स्वकेन
भावेन ]
अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] परद्रव्यको [जानाति ] जानता है
[यथा ] जैसे [सेटिका ]
कलई [आत्मनः स्वभावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] परद्रव्यको [सेटयति ] सफे द क रती है,
[तथा ] उसीप्रकार [जीवः अपि ] जीव भी [स्वकेन भावेन ] अपने स्वभावसे [परद्रव्यं ] परद्रव्यको