Samaysar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
५०९
सेटिका सेटिकायाः, किन्तु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न
किमपि तर्हि न कस्यापि सेटिका, सेटिका सेटिकैवेति निश्चयः यथायं
द्रष्टान्तस्तथायं दार्ष्टान्तिकःचेतयितात्र तावद्दर्शनगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम् तस्य तु
व्यवहारेण द्रश्यं पुद्गलादि परद्रव्यम् अथात्र पुद्गलादेः परद्रव्यस्य द्रश्यस्य दर्शकश्चेतयिता
किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धो मीमांस्यतेयदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति
तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसम्बन्धे
जीवति चेतयिता पुद्गलादेर्भवन् पुद्गलादिरेव भवेत्; एवं सति चेतयितुः स्वद्रव्योच्छेदः
न च द्रव्यान्तरसंक्र मस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्द्रव्यस्यास्त्युच्छेदः ततो न भवति चेतयिता
पुद्गलादेः यदि न भवति चेतयिता पुद्गलादेस्तर्हि कस्य चेतयिता भवति ? चेतयितुरेव
चेतयिता भवति ननु कतरोऽन्यश्चेतयिता चेतयितुर्यस्य चेतयिता भवति ? न खल्वन्यश्चेतयिता
चेतयितुः, किन्तु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि
पहले ही निषेध किया गया है इसलिये (यह सिद्ध हुआ कि) कलई दीवार-आदिकी नहीं है
(आगे और विचार करते हैं :) यदि कलई दीवार-आदिकी नहीं है तो कलई किसकी है ?
कलईकी ही कलई है
(इस) कलईसे भिन्न ऐसी दूसरी कौनसी कलई है कि जिसकी (यह)
कलई है ? (इस) कलईसे भिन्न अन्य कोई कलई नहीं है, किन्तु वे दो स्व-स्वामिरूप अंश
ही हैं
यहाँ स्व-स्वामिरूप अंशोंके व्यवहारसे क्या साध्य है ? कुछ भी साध्य नहीं है तब फि र
कलई किसीकी नहीं है, कलई कलई ही हैयह निश्चय है जैसे यह दृष्टान्त है, उसीप्रकार यह
दार्ष्टान्त है :इस जगतमें चेतयिता है वह दर्शनगुणसे परिपूर्ण स्वभाववाला द्रव्य है पुद्गलादि
परद्रव्य व्यवहारसे उसे चेतयिताका दृश्य है अब, ‘दर्शक (देखनेवाला या श्रद्धान करनेवाला)
चेतयिता, दृश्य (देखने योग्य या श्रद्धान करने योग्य) जो पुद्गलादिका परद्रव्य उसका है या
नहीं ?’
इसप्रकार उन दोनोंके तात्त्विक सम्बन्धका यहाँ विचार करते हैं :यदि चेतयिता
पुद्गलादिका हो तो क्या हो यह पहले विचार करते हैं :‘जिसका जो होता है वह वही होता
है, जैसे आत्माका ज्ञान होनेसे ज्ञान वह आत्मा ही है;’ऐसा तात्त्विक सम्बन्ध जीवन्त होनेसे,
चेतयिता यदि पुद्गलादि हो तो चेतयिता पुद्गलादि ही होना चाहिये (अर्थात् चेतयिता
पुद्गलादिस्वरूप ही होना चाहिए); ऐसा होने पर, चेतयिताके स्वद्रव्यका उच्छेद हो जायगा किन्तु
द्रव्यका उच्छेद तो नहीं होता, क्योंकि एक द्रव्यका अन्य द्रव्यरूपमें संक्रमण होनेका तो पहले
ही निषेध कर दिया है
इससे (यह सिद्ध हुआ कि) चेतयिता पुद्गलादिका नहीं है (आगे और
विचार करते हैं :) चेतयिता यदि पुद्गलादिका नहीं है तो चेतयिता किसका है ? चेतयिताका ही