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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
तर्हि न कस्यापि दर्शकः, दर्शको दर्शक एवेति निश्चयः ।
अपि च सेटिकात्र तावच्छवेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम् । तस्य तु व्यवहारेण
श्वैत्यं कुडयादि परद्रव्यम् । अथात्र कुडयादेः परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति
किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धो मीमांस्यते — यदि सेटिका कुडयादेर्भवति तदा
यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसम्बन्धे जीवति
सेटिका कुडयादेर्भवन्ती कुडयादिरेव भवेत्, एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः । न च
द्रव्यान्तरसंक्र मस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्द्रव्यस्यास्त्युच्छेदः । ततो न भवति सेटिका कुडयादेः ।
यदि न भवति सेटिका कुडयादेस्तर्हि कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका
भवति । ननु कतराऽन्या सेटिका सेटिकाया यस्याः सेटिका भवति ? न खल्वन्या
चेतयिता है । (इस) चेतयितासे भिन्न दूसरा ऐसा कौनसा चेतयिता है कि जिसका (यह) चेतयिता
है ? (इस) चेतयितासे भिन्न अन्य कोई चेतयिता नहीं है, किन्तु वे दो स्व-स्वामिरूप अंश ही
हैं । यहाँ स्व-स्वामिरूप अंशोंके व्यवहारसे क्या साध्य है? कुछ भी साध्य नहीं है । तब फि र दर्शक
किसीका नहीं है, दर्शक दर्शक ही है — यह निश्चय है ।
(इसप्रकार यहाँ यह बताया गया है कि : ‘आत्मा परद्रव्यको देखता है अथवा श्रद्धा करता
है’ — यह व्यवहारकथन है । ‘आत्मा अपनेको देखता है अथवा श्रद्धा करता है’ — इस कथनमें
भी स्व-स्वामि-अंशरूप व्यवहार है; ‘दर्शक दर्शक ही है’ — यह निश्चय है ।)
और (जिसप्रकार ज्ञायक तथा दर्शकके सम्बन्धमें दृर्ष्टान्त-दार्ष्टान्तसे कहा है) इसीप्रकार
अपोहक (त्याग करनेवाले)के सम्बन्धमें कहा जाता है; — इस जगतमें कलई है वह श्वेतगुणसे
परिपूर्ण स्वभाववाला द्रव्य है । दीवार-आदि परद्रव्य व्यवहारसे उस कलईका श्वैत्य है (अर्थात्
कलई द्वारा श्वेत किये जाने योग्य पदार्थ है) । अब, श्वेत करनेवाली कलई, श्वेत की जाने योग्य
जो दीवार-आदि परद्रव्य उसकी है या नहीं ?’ — इसप्रकार उन दोनोंके तात्त्विक सम्बन्धका यहाँ
विचार किया जाता है : — यदि कलई दीवार-आदि परद्रव्यकी हो तो क्या हो सो पहले विचार
करते हैं : – ‘जिसका जो होता है वह वही होता है, जैसे आत्माका ज्ञान होनेसे वह आत्मा ही है;’ —
ऐसा तात्त्विक सम्बन्ध जीवन्त (विद्यमान) होनेसे, कलई यदि दीवार-आदिकी हो तो कलई वह
दीवार-आदि ही होनी चाहिए (अर्थात् कलई दीवार-आदि स्वरूप ही होनी चाहिए); ऐसा होने
पर, कलईके स्वद्रव्यका उच्छेद हो जायेगा । परन्तु द्रव्यका उच्छेद तो नहीं होता, क्योंकि एक
द्रव्यका अन्य द्रव्यरूपमें संक्रमण होनेका तो पहले ही निषेध किया गया है । इसलिये (यह सिद्ध
हुआ कि) कलई दीवार-आदिकी नहीं है । (आगे और विचार करते हैं :) यदि कलई दीवार-