Samaysar (Hindi).

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व्यवहारोऽभूतार्थो भूतार्थो दर्शितस्तु शुद्धनयः
भूतार्थमाश्रितः खलु सम्यग्दृष्टिर्भवति जीवः ।।११।।
व्यवहारनयो हि सर्व एवाभूतार्थत्वादभूतमर्थं प्रद्योतयति, शुद्धनय एक एव
भूतार्थत्वात् भूतमर्थं प्रद्योतयति तथा हियथा प्रबलपंक संवलनतिरोहितसहजैकाच्छभावस्य
पयसोऽनुभवितारः पुरुषाः पंक पयसोर्विवेकमकुर्वन्तो बहवोऽनच्छमेव तदनुभवन्ति; केचित्तु
स्वकरविकीर्णक तकनिपातमात्रोपजनितपंक पयोविवेकतया स्वपुरुषकाराविर्भावितसहजैकाच्छ-
भावत्वादच्छमेव तदनुभवन्ति; तथा प्रबलकर्मसंवलनतिरोहितसहजैकज्ञायकभावस्यात्मनोऽनुभवितारः
पुरुषा आत्मकर्मणोर्विवेकमकुर्वन्तो व्यवहारविमोहितहृदयाः प्रद्योतमानभाववैश्वरूप्यं तमनुभवन्ति;
भूतार्थदर्शिनस्तु स्वमतिनिपातितशुद्धनयानुबोधमात्रोपजनितात्मकर्मविवेकतया स्वपुरुषकारा-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
२३
गाथार्थ :[व्यवहारः ] व्यवहारनय [अभूतार्थः ] अभूतार्थ है [तु ] और [शुद्धनयः ]
शुद्धनय [भूतार्थः ] भूतार्थ है, ऐसा [दर्शितः ] ऋषीश्वरोंने बताया है; [जीवः ] जो जीव
[भूतार्थं ] भूतार्थका [आश्रितः ] आश्रय लेता है वह जीव [खलु ] निश्चयसे (वास्तवमें)
[सम्यग्दृष्टिः ] सम्यग्दृष्टि [भवति ] है
टीका :व्यवहारनय सब ही अभूतार्थ है, इसलिये वह अविद्यमान, असत्य, अभूत
अर्थको प्रगट करता है; शुद्धनय एक ही भूतार्थ होनेसे विद्यमान, सत्य, भूत अर्थको प्रगट करता
है
यह बात दृष्टान्तसे बतलाते हैं :जैसे प्रबल कीचड़के मिलनेसे जिसका सहज एक
निर्मलभाव तिरोभूत (आच्छादित) हो गया है, ऐसे जलका अनुभव करनेवाले पुरुषजल और
कीचड़का विवेक न करनेवाले (दोनोंके भेदको न समझनेवाले)बहुतसे तो उस जलको
मलिन ही अनुभवते हैं, किन्तु कितने ही अपने हाथसे डाले हुवे कतकफलके पड़ने मात्रसे
उत्पन्न जल-कादवकी विवेकतासे, अपने पुरुषार्थ द्वारा आविर्भूत किये गये सहज एक
निर्मलभावपनेसे, उस जलको निर्मल ही अनुभव करते हैं; इसीप्रकार प्रबल कर्मोंके मिलनेसे,
जिसका सहज एक ज्ञायकभाव तिरोभूत हो गया है, ऐसे आत्माका अनुभव करनेवाले पुरुष
आत्मा और कर्मका विवेक (भेद) न करनेवाले, व्यवहारसे विमोहित हृदयवाले तो, उसे
(आत्माको) जिसमें भावोंकी विश्वरूपता (अनेकरूपता) प्रगट है ऐसा अनुभव करते हैं; किन्तु
भूतार्थदर्शी (शुद्धनयको देखनेवाले) अपनी बुद्धिसे डाले हुवे शुद्धनयके अनुसार बोध होनेमात्रसे
उत्पन्न आत्म-कर्मकी विवेकतासे, अपने पुरुषार्थ द्वारा आविर्भूत किये गये सहज एक
१. कतकफल=निर्मली; (एक औषधि जिससे कीचड़ नीचे बैठ जाता है)