Samaysar (Hindi).

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
मरतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ३८ नाहं
शोकनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ३९ नाहं
भयनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४० नाहं
जुगुप्सानोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४१ नाहं
स्त्रीवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४२ नाहं
पुंवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४३ नाहं
नपुंसकवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४४
नाहं नरकायुःकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४५ नाहं
तिर्यगायुःकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४६ नाहं मानुषायुःकर्मफलं
भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४७ नाहं देवायुःकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव
संचेतये ४८
नाहं नरकगतिनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ४९
संचेतन करता हूँ।३७। मैं अरतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप
आत्माका ही संचेतन करता हूँ।३८। मैं शोकनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता,
चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।३९। मैं भयनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको
नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४०। मैं जुगुप्सानोकषाय-
वेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४१। मैं
स्त्रीवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ
।४२। मैं पुरुषवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप
आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४३। मैं नपुंसकवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं
भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४४।
मैं नरकआयुकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४५।
मैं तिर्यंचआयुकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।४६। मैं
मनुष्यआयुकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ
।४७। मैं देवआयुकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।४८।
मैं नरकगतिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता