कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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नाहं तिर्यग्गतिनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५० । नाहं
मनुष्यगतिनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५१ । नाहं देवगति-
नामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५२ । नाहमेकेन्द्रियजातिनाम-
कर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५३ । नाहं द्वीन्द्रियजातिनामकर्मफलं
भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५४ । नाहं त्रीन्द्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे,
चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ५५ । नाहं चतुरिन्द्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मा-
नमात्मानमेव संचेतये ५६ । नाहं पंचेन्द्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मान-
मात्मानमेव संचेतये ५७ । नाहमौदारिकशरीरनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमा-
त्मानमेव संचेतये ५८ । नाहं वैक्रियिकशरीरनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव
संचेतये ५९ । नाहमाहारकशरीरनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६० ।
नाहं तैजसशरीरनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६१ । नाहं कार्मण-
शरीरनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६२ । नाहमौदारिक-
शरीरांगोपांगनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६३ । नाहं वैक्रियिक-
हूँ।४९। मैं तिर्यंचगतिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५०। मैं मनुष्यगतिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५१। मैं देवगतिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५२। मैं एकेन्द्रियजातिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५३। मैं द्वीन्द्रियजातिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५४। मैं त्रीन्द्रियजातिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ।५५। मैं चतुरिन्द्रियजातिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ।५६। मैं पंचेन्द्रियजातिनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ।५७। मैं औदारिकशरीरनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ।५८। मैं वैक्रियिकशरीरनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही
संचेतन करता हूँ।५९। मैं आहारकशरीरनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका
ही संचेतन करता हूँ।६०। मैं तैजसशरीरनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका
ही संचेतन करता हूँ।६१। मैं कार्मणशरीरनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका
ही संचेतन करता हूँ।६२। मैं औदारिकशरीरअंगोपांगनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप
आत्माका ही संचेतन करता हूँ।६३। मैं वैक्रियिकशरीरअंगोपांगनामकर्मके फलको नहीं भोगता,