Samaysar (Hindi).

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
शरीरांगोपांगनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६४
नाहमाहारकशरीरांगोपांगनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६५
नाहमौदारिकशरीरबन्धननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६६
नाहं वैक्रियिकशरीरबन्धननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६७
नाहमाहारकशरीरबन्धननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६८
नाहं तैजसशरीरबन्धननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ६९
नाहं कार्मणशरीरबन्धननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७०
नाहमौदारिकशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७१
नाहं वैक्रियिकशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७२
नाहमाहारकशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७३
नाहं तैजसशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७४
नाहं कार्मणशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७५
नाहं समचतुरस्रसंस्थाननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७६
नाहं न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ७७
चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।६४। मैं आहारकशरीर-अंगोपांगनामकर्मके फलको
नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।६५। मैं औदारिकशरीरबंधननामकर्मके
फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।६६। मैं
वैक्रियिकशरीरबन्धननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ
।६७। मैं आहारकशरीरबन्धननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ।६८। मैं तैजसशरीरबन्धननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही
संचेतन करता हूँ।६९। मैं कार्मणशरीरबन्धननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप
आत्माका ही संचेतन करता हूँ।७०। मैं औदारिकशरीरसंघातनामकर्मके फलको नहीं भोगता,
चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।७१। मैं वैक्रियिकशरीरसंघातनामकर्मके फलको नहीं
भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।७२। मैं आहारकशरीरसंघातनामकर्मके
फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।७३। मैं
तैजसशरीरसंघातनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ।७४।
मैं कार्मणशरीरसंघातनामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता
हूँ
।७५। मैं समचतुरस्रसंस्थाननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन
करता हूँ।७६। मैं न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका