Samaysar (Hindi). Gatha: 414.

< Previous Page   Next Page >


Page 587 of 642
PDF/HTML Page 620 of 675

 

background image
कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
५८७
ववहारिओ पुण णओ दोण्णि वि लिंगाणि भणदि मोक्खपहे
णिच्छयणओ ण इच्छदि मोक्खपहे सव्वलिंगाणि ।।४१४।।
व्यावहारिकः पुनर्नयो द्वे अपि लिङ्गे भणति मोक्षपथे
निश्चयनयो नेच्छति मोक्षपथे सर्वलिङ्गानि ।।४१४।।
यः खलु श्रमणश्रमणोपासकभेदेन द्विविधं द्रव्यलिंगंं भवति मोक्षमार्ग इति प्ररूपणप्रकारः
स केवलं व्यवहार एव, न परमार्थः, तस्य स्वयमशुद्धद्रव्यानुभवनात्मकत्वे सति परमार्थत्वा-
भावात्; यदेव श्रमणश्रमणोपासकविकल्पातिक्रान्तं
द्रशिज्ञप्तिप्रवृत्तवृत्तिमात्रं शुद्धज्ञानमेवैकमिति
निस्तुषसंचेतनं परमार्थः, तस्यैव स्वयं शुद्धद्रव्यानुभवनात्मकत्वे सति परमार्थत्वात् ततो ये
व्यवहारमेव परमार्थबुद्धया चेतयन्ते, ते समयसारमेव न संचेतयन्ते; य एव परमार्थं परमार्थबुद्धया
‘व्यवहारनय ही मुनिलिंगको और श्रावकलिंगकोदोनोंको मोक्षमार्ग कहता है, निश्चयनय
किसी लिंगको मोक्षमार्ग नहीं कहता’यह गाथा द्वारा कहते हैं :
व्यवहारनय, इन लिंग द्वयको मोक्षके पथमें कहे
निश्चय नहीं माने कभी को लिंग मुक्तीपंथमें।।४१४।।
गाथार्थ :[व्यावहारिकः नयः पुनः ] व्यवहारनय [द्वे लिङ्गे अपि ] दोनों लिंगोंको
[मोक्षपथे भणति ] मोक्षमार्गमें कहता है (अर्थात् व्यवहारनय मुनिलिंग और गृहीलिंगको मोक्षमार्ग
कहता है); [निश्चयनयः ] निश्चयनय [सर्वलिङ्गानि ] सभी लिंगोंको (अर्थात् किसी भी लिंगको)
[मोक्षपथे न इच्छति ] मोक्षमार्गमें नहीं मानता
टीका :श्रमण और श्रमणोपासकके भेदसे दो प्रकारके द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग हैं
इसप्रकारका जो प्ररूपण-प्रकार (अर्थात् इसप्रकारकी जो प्ररूपणा) वह केवल व्यवहार ही है,
परमार्थ नहीं, क्योंकि वह (प्ररूपणा) स्वयं अशुद्ध द्रव्यकी अनुभवनस्वरूप है, इसलिये उसको
परमार्थताका अभाव है; श्रमण और श्रमणोपासकके भेदोंसे अतिक्रान्त, दर्शनज्ञानमें प्रवृत्त
परिणतिमात्र (
मात्र दर्शन-ज्ञानमें प्रवर्तित हुई परिणतिरूप) शुद्ध ज्ञान ही एक हैऐसा जो निष्तुष
(निर्मल) अनुभवन ही परमार्थ है, क्योंकि वह (अनुभवन) स्वयं शुद्ध द्रव्यका अनुभवनस्वरूप
होनेसे उसीके परमार्थत्व है इसलिये जो व्यवहारको ही परमार्थबुद्धिसे (परमार्थ मानकर)
अनुभव करते हैं, वे समयसारका ही अनुभव नहीं करते; जो परमार्थको परमार्थबुद्धिसे अनुभव करते