पातिन्योऽनन्ताः शक्त यः उत्प्लवन्ते । — आत्मद्रव्यहेतुभूतचैतन्यमात्रभावधारणलक्षणा जीवत्व-
शक्ति : १ । अजडत्वात्मिका चितिशक्ति : २ । अनाकारोपयोगमयी द्रशिशक्ति : ३ ।
साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्ति : ४ । अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्ति : ५ । स्वरूपनिर्वर्तनसामर्थ्यरूपा
वीर्यशक्ति : ६ । अखण्डितप्रतापस्वातन्त्र्यशालित्वलक्षणा प्रभुत्वशक्ति : ७। सर्वभावव्यापकैक-
भावरूपा विभुत्वशक्ति : ८ । विश्वविश्वसामान्यभावपरिणतात्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्ति : ९ ।
विश्वविश्वविशेषभावपरिणतात्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति : १० । नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमान-
लोकालोकाकारमेचकोपयोगलक्षणा स्वच्छत्वशक्ति : ११ । स्वयम्प्रकाशमानविशदस्व-
संवित्तिमयी प्रकाशशक्ति : १२ । क्षेत्रकालानवच्छिन्नचिद्विलासात्मिका असंकु चितविकाशत्व-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
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करना जिसका लक्षण है ऐसी जीवत्व नामक शक्ति ज्ञानमात्र भावमें – आत्मामें – उछलती
है)।१। अजड़त्वस्वरूप चितिशक्ति (अजड़त्व अर्थात् चेतनत्व जिसका स्वरूप है
ऐसी चितिशक्ति।)।२। अनाकार उपयोगमयी दृशिशक्ति। (जिसमें ज्ञेयरूप आकार अर्थात्
विशेष नहीं है ऐसे दर्शनोपयोगमयी — सत्तामात्र पदार्थमें उपयुक्त होनेरूप — दृशिशक्ति
अर्थात् दर्शनक्रियारूप शक्ति।)।३। साकार उपयोगमयी ज्ञानशक्ति। (जो ज्ञेय
पदार्थोंके विशेषरूप आकारोंमें उपयुक्त होती है ऐसी ज्ञानोपयोगमयी ज्ञानशक्ति।)।४।
अनाकुलता जिसका लक्षण अर्थात् स्वरूप है ऐसी सुखशक्ति।५।
स्वरूपकी ( – आत्मस्वरूपकी) रचनाकी सामर्थ्यरूप वीर्यशक्ति।६। जिसका प्रताप अखण्डित
है अर्थात् किसीसे खण्डित की नहीं जा सकती ऐसे स्वातंत्र्यसे (-स्वाधीनतासे)
शोभायमानपना जिसका लक्षण है ऐसी प्रभुत्वशक्ति।७। सर्व भावोंमें व्यापक ऐसे
एक भावरूप विभुत्वशक्ति। (जैसे, ज्ञानरूपी एक भाव सर्व भावोंमें व्याप्त होता है।)।८।
समस्त विश्वके सामान्य भावको देखनेरूपसे (अर्थात् सर्व पदार्थोंके समूहरूप
लोकालोकको सत्तामात्र ग्रहण करनेरूपसे) परिणमित ऐसे आत्मदर्शनमयी सर्वदर्शित्वशक्ति।९।
समस्त विश्वके विशेष भावोंको जाननेरूपसे परिणमित ऐसे आत्मज्ञानमयी
सर्वज्ञत्वशक्ति।१०। अमूर्तिक आत्मप्रदेशोंमें प्रकाशमान लोकालोकके आकारोंसे मेचक (अर्थात्
अनेक-आकाररूप) ऐसा उपयोग जिसका लक्षण है ऐसी स्वच्छत्वशक्ति।
(जैसे दर्पणकी स्वच्छत्वशक्तिसे उसकी पर्यायमें घटपटादि प्रकाशित होते हैं,
उसीप्रकार आत्माकी स्वच्छत्वशक्तिसे उसके उपयोगमें लोकालोकके आकार प्रकाशित होते
हैं।)।११। स्वयं प्रकाशमान विशद ( – स्पष्ट) ऐसी स्वसंवेदनमयी ( – स्वानुभवमयी)
प्रकाशशक्ति।१२। क्षेत्र और कालसे अमर्यादित ऐसी चिद्विलासस्वरूप
( – चैतन्यके विलासस्वरूप) असंकुचितविकासत्वशक्ति।१३। जो अन्यसे नहीं किया जाता और