Samaysar (Hindi).

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શ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢ - ૩૬૪૨૫૦
शक्ति : १३ अन्याक्रियमाणान्याकारकैकद्रव्यात्मिका अकार्यकारणत्वशक्ति : १४ परात्म-
निमित्तकज्ञेयज्ञानाकारग्रहणग्राहणस्वभावरूपा परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति : १५ अन्यूनाति-
रिक्त स्वरूपनियतत्वरूपा त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति : १६ षट्स्थानपतितवृद्धिहानि-
परिणतस्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्टगुणात्मिका अगुरुलघुत्वशक्ति : १७ क्रमाक्रमवृत्त-
वृत्तित्वलक्षणा उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति : १८ द्रव्यस्वभावभूतध्रौव्यव्ययोत्पादालिंगितसद्रश-
विसद्रशरूपैकास्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति : १९ कर्मबन्धव्यपगमव्यंजितसहजस्पर्शादि-
शून्यात्मप्रदेशात्मिका अमूर्तत्वशक्ति : २० सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्त परिणाम-
उपरम = निवृत्ति; अन्त; अभाव
६१२
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
अन्यको नहीं करता ऐसे एक द्रव्यस्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति (जो अन्यका कार्य नहीं
है और अन्यका कारण नहीं है ऐसा जो एक द्रव्य उस-स्वरूप अकार्यकारणत्व-
शक्ति
)१४ पर और स्व जिनके निमित्त हैं ऐसे ज्ञेयाकारों तथा ज्ञानाकारोंको ग्रहण करनेके
और ग्रहण करानेके स्वभावरूप परिणम्यपरिणामकत्व शक्ति (पर जिनके कारण हैं ऐसे
ज्ञेयाकारोंको ग्रहण करनेके और स्व जिनका कारण है ऐसे ज्ञानाकारोंको ग्रहण करानेके
स्वभावरूप परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति
)१५ जो कमबढ़ नहीं होता ऐसे स्वरूपमें
नियतत्वरूप (निश्चित्तया यथावत् रहनेरूप) त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति१६ षट्स्थानपतित
वृद्धिहानिरूपसे परिणमित, स्वरूप-प्रतिष्ठत्वके कारणरूप (वस्तुके स्वरूपमें रहनेके
कारणरूप) ऐसा जो विशिष्ट (खास) गुण है उस-स्वरूप अगुरुलघुत्व शक्ति [इस
षट्स्थानपतित वृद्धिहानिका स्वरूप ‘गोम्मटसार’ ग्रन्थसे जानना चाहिये अविभाग
प्रतिच्छेदोंकी संख्यारूप षट्स्थानोंमें पतितसमाविष्टवस्तुस्वभावकी वृद्धिहानि जिससे (
जिस गुणसे) होती है और जो (गुण) वस्तुको स्वरूपमें स्थिर होनेका कारण है ऐसा कोई
गुण आत्मामें है; उसे अगुरुलघुत्वगुण कहा जाता है
ऐसी अगुरुलघुत्वशक्ति भी आत्मामें
है]१७ क्रमप्रवृत्तिरूप और अक्रमप्रवृत्तिरूप वर्त्तन जिसका लक्षण है ऐसी
उत्पादव्ययध्रुवशक्ति (क्रमवृत्तिरूप पर्याय उत्पादव्ययरूप है और अक्रमवृत्तिरूप गुण
ध्रुवत्वरूप है)१८ द्रव्यके स्वभावभूत ध्रौव्य-व्यय-उत्पादसे आलिंगित (-स्पर्शित), सदृश
और विसदृश जिसका रूप है ऐसे एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति१९ कर्मबन्धके
अभावसे व्यक्त किये गये, सहज, स्पर्शादि-शून्य (स्पर्श, रस, गंध और वर्णसे रहित) ऐसे
आत्मप्रदेशस्वरूप अमूर्तत्वशक्ति२० समस्त, कर्मोके द्वारा किये गये, ज्ञातृत्वमात्रसे भिन्न जो
परिणाम उन परिणामोंके करणके उपरमस्वरूप (उन परिणामोंको करनेकी निवृत्तिस्वरूप)
अकर्तृत्वशक्ति (जिस शक्तिसे आत्मा ज्ञातृत्वके अतिरिक्त कर्मोंसे किये गये परिणामोंका कर्ता