ॐ
नमः श्रीसमयसार-परमागमाय।
नमः श्रीसद्गुरुदेवाय।
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प्रकाशकीय निवेदन
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[आठवाँ संस्करण]
अध्यात्मश्रुतशिरोमणि परमागम श्री समयसार, भगवान् श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव प्रणीत
सर्वोत्कृष्ट कृति है। गुजराती भाषामें उसका गद्यपद्यानुवाद सर्वप्रथम वि. सं. १९९७में सोनगढ़से
प्रकाशित हुआ था। आज तक उसके गुजराती अनुवादके सात संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
इस गुजराती अनुवादका हिन्दी रूपान्तर वि. सं. २०२३में मारोठ़(राजस्थान)से ‘पाटनी
ग्रंथमाला’की ओरसे प्रकाशित किया गया था। इस रूपान्तरके क्रमशः सात संस्करण श्री दिगम्बर
जैन स्वाध्यायमन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ एवं अन्य ट्रस्टोंके द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। उसका यह
आठवाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए अतीव आनन्द अनुभूत होता है।
श्री परमश्रुतप्रभावक मण्डलकी ओरसे यह परमागम हिन्दी भाषामें (संस्कृत टीकाद्वय सह)
वि. सं. १९७५में प्रकाशित हुआ था। पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीके पवित्र करमकमलमें
यह परमागम वि. सं. १९७८में आया। उनके करकमलमें यह परमपावन चिन्तामणि आने पर उस
कुशल जौहरीने उस श्रुतरत्नको परख लिया और समयसारकी कृपासे उन्होंने चैतन्यमूर्ति भगवान्
समयसारके दर्शन किये। उस पवित्र प्रसंगका उल्लेख पूज्य गुरुदेवके जीवनचरित्रमें इस प्रकार
किया गया है : — ‘‘वि. सं. १९७८में वीरशासनके उद्धारका, अनेक मुमुक्षुओंके महान पुण्योदयको
सूचित करनेवाला एक पवित्र प्रसंग बन गया। विधिकी किसी धन्य पलमें
श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचित श्री समयसार नामक महान ग्रन्थ महाराजश्रीके हस्तकमलमें
आया। समयसार पढ़ते ही उनके हर्षका पार न रहा। जिसकी शोधमें वे थे वह उनको मिल गया।
श्री समयसारमें अमृतके सरोवर छलकते महाराजश्रीके अन्तर्नयनने देखे। एकके बाद एक गाथा
पढ़ते हुए महाराजश्रीने घूँट भर-भरके वह अमृत पीया। ग्रन्थाधिराज समयसारने महाराजश्री पर
अपूर्व, अलौकिक, अनुपम उपकार किया और उनके आत्मानन्दका पार न रहा। महाराजश्रीके
अन्तर्जीवनमें परमपवित्र परिवर्तन हुआ। भूली हुई परिणतिने निज घर देखा। उपयोग-झरनेके प्रवाह
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